गज़ल " बहुत याद आये रे सावन की भींगी रातें "
नाम पर आपके हम मुस्करा क्या दिए
कि लोग अन्दाज़ जाने लगा क्या लिए
कि लोग अन्दाज़ जाने लगा क्या लिए
छुपाना तो चाहा था मैंने मुहब्बत मगर
ईश्क़ के उसूल ही ऐसे,ख़ता क्या किये ।
खुश रहे तूं सदा दुआ ये मांगा ख़ुदा से
हँसी होठों पे रहे सदा ऐसी ही अदा से
जैसे ख़ुश्बू निभाये साथ गुलों का सदा
वैसे रहे हाथ तेरा भी मेरे हाथों में सदा ।
महफ़िलों में भी बैठकर मैं अन्दाज़ ली
कितनी बिन तेरे अधूरी मैं अहसास ली
लाखों की भीड़ में भी लगे अकेली हूँ मैं
चले आओ फिर ज़िन्दगी हो बिंदास सी ।
न जाने मेरी आँखों को क्या हो गया है
कि आईना निहारूँ आये तूं ही तूं नज़र
चढ़ा कैसा ख़ुमार मुझपर तेरे प्यार का
पांव रखती कहीं हूँ पड़ते कहीं हैं मगर ।
छिपा रखा जो दिल में कह दो वो राज
चैन चुराने रातों में मत आया करो याद
बता सीखा कहाँ से तूने करतब ये फ़न
बेचैन कर ख़्वाब में ना किया करो बात ।
बहुत याद आये रे सावन की भींगी रातें
तस्वीर लेके तेरी हाथों में करती हूँ बातें
भींगती आँसुओं की बारिश में निशदिन
अरे कहीं देर ना हो जाये तेरे आते-आते ।
शैल सिंह
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