बुधवार, 15 अप्रैल 2020

जीवन की सफलता पर कविता '' लकीरें तो हाथ की रेखाएं,भाग्य मिटा न सके दुश्मन भी ''

लकीरें तो हाथ की रेखाएं,भाग्य मिटा सके न दुश्मन भी


पंख पसारा मैंने लेकिन कभी अंम्बर का विस्तार न मांगा
व्यवधानों ने किये प्रहार मगर,मैंने कभी हथियार न डाला,

अगणित बार हुई हार,हृदय पर अगण्य बार सही आघात 
मगर समर में कर्तव्यनिष्ठ हो ,प्रतिज्ञा करती रही अभ्यास,

हारजीत के दांवपेंच में,दृढ़ इच्छाशक्ति लेती रही आकार
जिनकी आलोचनाओं से बढ़ा हौसला,उनका भी आभार,

बहुत छला विश्वासों ने अपना बन,पीड़ाओं का दे उपहार
परिताप का पारावार ना भूलता ना अपनों का ये उपकार,

भयभीत हो परिस्थितियों से,छोड़े न कभी कौशल ने हाथ
हारकर मुश्किलों से आत्मविश्वास मेरे,कभी न छोड़े साथ,

मुर्छित होकर भी कर्म पथ पर,डटे रहे निर्भीक कदम मेरे
उगते दिनकर को रोक सके ना घने अतिक्रमण के कोहरे,

तूफां का सामना किये मगर,की ना श्रम की धीमी रफ़्तार
परिश्रम के अथक,अश्रान्त प्रयास से,मुकद्दर लिया संवार,

गिर-गिर कर उठना औ निखरना,बना ली प्रयत्न की रीत
पात्रता पर षडयंत्र करने वाले,देख लें प्रवीणता की जीत,

लकीरें तो हाथ की रेखाएं,भाग्य मिटा सके न दुश्मन भी
नियति भी हो नतमस्तक जज़्बों के आगे की समर्पण ही,

पथशूल बिछाने वाले देख,तूने कितना था अवसाद दिया
हठ कर मुकाबलों से जूझी विजय का महा प्रसाद लिया ।

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