गजल रूपी कविता
ऐ मेरे ख़ुदा--
जब-जब दस्तक दीं उम्मीदों पर आहटें
वज्र आकर गिरे तब-तब उन आहटों पर ,
घात बहुत सहीं मेरी मासूम चाहतें मग़र
दुआ दे मुहर लगा दी तूने मेरी चाहतों पर ,
अति विश्वासों ने छल मुझे आहत किया
कृपा कर मरहम लगा दी तूने आहतों पर ,
हो गईं नाक़ाम साज़िशें मेरे क़ातिलों की
रब ना करना रहम इन ग़द्दार क़ातिलों पर ,
रब ना करना रहम इन ग़द्दार क़ातिलों पर ,
मुद्दतों बाद मिली आज मुझसे है मन्जिल
ऐ ख़ुदा करना करम बस मेरी इबादतों पर ।
शैल सिंह
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