रविवार, 4 मार्च 2018

होली पर कविता--रोम-रोम हुए टेसू पलाश

होली पर कविता--रोम-रोम हुए टेसू पलाश 


आया होली का त्यौहार
बरसे रंगों की फुहार
बहे ठगिनी बयार बड़े शान से
फागुन बरसाए गुलाल आसमान से ,

ग्वालबाल संग सांवरे
मधुर बांसुरी बजावें
नाचे ग्वालिनें अलमस्त
राधा बावरी हो गावें

लेकर ढोलक,झांझ,मंजीरे
चले पीकर भंग जमुना के तीरे
करें विश्राम कदम की छईंया
जहाँ रंभाती गोकुल की गईंया ,

अल्हड़ सी करते मौज मस्ती
मचाते हुड़दंग हुरियारों की
चली बस्ती-बस्ती,गली-गली 
टोली रसिया गाते हुए यारों की ,

बैर,भाव,द्वेष भूला कर सब
दूर मन के कर मलाल
रंग-बिरंग प्रीत के रंगों से
गालों मलें अबीर गुलाल ,

करें हास-परिहास सब सखियां 
गहि-गहि मारें ऊपर पिचकारी
उन्मत्त,उमंगों में डूब भिगोतीं 
चोली,अंगिया,अंग मतवारी ,

हुआ नगर-डगर सतरंगी
गढ़-गढ़ का आलम रक्ताभ
मस्ती,रोमांच और उत्साह
अभिभूत करे अल्हड़ अंदाज ,

बहका मन वैरागी फागुन में 
संयम के टूटे सारे प्रतिबन्ध
रोम-रोम हुए टेसू पलाश
जोड़ वसन्ती हवा संग अनुबंध  ,

कहें बुरा न मानो होली है बुढ़वे 
मुँख दबा गिलौरी,नैनों के बान से
देख घर,आंगन,चौपाल में रौनक
झूमें धरती,फिजां अभिमान से ।

                       शैल सिंह


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