सावन पर कविता

           सावन पर कविता 


है सावन के महीने की अजी बात निराली
मन्त्रमुग्ध कर देता क्षिति बिखेर हरियाली ,

तोड़ संयम बूँद-बूँद सावन बरसे झमाझम
उसर,बंजर,परती पृथ्वी का करे सीना नम ,

बाढ़,आपदा,भूकम्प से छलनी करता मन
रंग धानी रंग में जग को भी बनाता दुल्हन ,

इन्द्रदेव हर्षित हो करते सावन में जल वर्षा
गाते दादुर,मोर,पपिहे नाचती शिखिनी हर्षा ,

गरज नभ से कारी घटायें गिरातीं बिजलियां 
उत्तेज क्षुद्र नाले,नौले उफ़ान मारतीं नदियां

कजरी,तीज,झूला,मेघ,मल्हारों भरा मौसम
नज़ारा देख हरा-भरा लगे चित्त को मनोरम ,

तन विरहन का जलाता विरह की अगन में
सावन प्रेम का अंकुर उगाता युवा जहन में ,

धूप बदली की मस्तानी,सुहानी लगती भोर
सोंधी महक माटी की शोख़ पवन करे शोर ,

नागपंचमी,जन्माष्टमी,रक्षाबंधन का त्योहार
सब मौसमों में सावन लगे सबसे ख़ुशग़वार ।

क्षिति---धरती  
 
शैल सिंह                     






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