एक देशभक्त सिपाही के उद्वेग का वर्णन गीत वद्ध कविता में ,
बाँधा सर पे कफ़न हम वतन के लिए
जांनिसार करना मादरे चमन के लिए ,मत प्रिये राह रोको कर दो ख़ुशी से विदा
भाल पर मातृ भूमि का रज-कण दो सजा
दिल पे खंजर चलातीं हरकतें दुश्मनों की
लेना सरहद पे बदला हर बलिदानियों का ,
है पिता का आशीष गर दुआ साथ माँ की
प्रिये होगी विजय मुश्किले हर हालात की
रखना इंतजार का दीया दिल में जलाकर
सलामत रहा होगी बरसात मुलाक़ात की ,
अश्कों के बाल दीप ना बुज़दिल बनाओ
ना कजरे की धार की ये बिजली गिराओ
पिघल न जाये कहीं मोम सा दिल ये मेरा
विघ्न के इस प्रलय की ना बदली बिछाओ ,
महबूब ये वतन तेरा वतन से प्यार करना
वतन की आबरू लिए सुहाग वार करना
माँग अपनी संवारो संकल्प के सामान से
कंगना कुंकुम ना रोको न मनुहार करना ,
आरती के थाल आज़ सम्मान से सजाओ
धरा पलकें बिछा पथ निहारती सपूत का
फर्ज़ का यह कटघरा न मुज़रिम बनाओ ,
है ललकारता नसों में नशा इन्क़लाब का
तूफां से लड़ते देखना कश्ती के ताब का
व्यर्थ ये जनम जो वतन के काम आये ना
व्यर्थ रक्त शिराएं जिसमें उबाल आये ना ,
मक्कारियों से दुश्मनों के आजिज़ हैं हम
बार-बार क्यूँ हुए शिकार साज़िश के हम
हौसलों के आग से तबाह करना शत्रु को
भेंजो रणसमर न नैन कर ख़ारिश में नम ,
जीना मरना राष्ट्र हित लिए आरजू है मेरी
कर्ज़ माँ का फ़र्ज निभाऊँ जुस्तजू है मेरी
मौत आये ग़र अर्थी पर कफ़न हो तिरंगा
शहादत पे सुनना आख़िरी गुफ़्तगू ये मेरी ,
ये तन समर्पित सरज़मीं पे देश प्राण मेरा
ऐसा बनूँ मैं प्रहरी लगे सारा आवाम मेरा
रखूँ अखण्ड देश को मैं लाल भारती का
माँ भारती की आन पर कुर्बान जान मेरा ,
वतन पे मिटने वालों दिल से तुम्हें सलाम
मिटना हमें क़ुबूल ज़िन्दगी वतन के नाम
वफ़ा की मेरे खुश्बू सने माटी में वतन के
शौर्य,शूरवीरता पे मिले हमें बस ये इनाम।
शैल सिंह
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