मंगलवार, 26 मई 2015

बेपनाह मोहब्बत हर शै लुटाने लगी है


बेपनाह मोहब्बत हर शै लुटाने लगी है 

इक तासीर दिल को जब से मिली है
ज़िन्दगी झूम कर मुस्कराने लगी है

अमां का कासा मिला मिली ज़िन्दगी 
गीत ख़ुशी के जुबां गुनगुनाने लगी है

इनाम मुझे मेरी परस्तिश का मिला
सांसों-सांसों में मस्ती समाने लगी है

सप्तरंगों में दुनिया सज़ी ख़्वाबों की
उन्नींदी रातें चांदनी में नहाने लगी है

झनझनाने लगे सुप्त सभी तार मन के
सुर टूटे तारों की वीणा सजाने लगी है

मोतियों में हुईं आँसू की बूंदें तब्दील
वैरागन उदासी नग़मा सुनाने लगी है

खुलुश मिल गया है शाद दिल है मेरा
फिर आरजूवें महफ़िल सजाने लगी हैं

दर्दों में डूबी थी जो आज तक बन्दग़ी 
आकर सपनों में ताबीर पिराने लगी है

रातें सितारों से जगमग मेरी हो गईं हैं 
हिलोरें किनारों से बातें करानें लगी हैं

आकर वाहयातों देखो मेरी नाचीज़ पर
बेपनाह मोहब्बत हर शै लुटाने लगी है

ठहर सी गयी थी ज़िंदगी इक मोड़ पर
अब वो रास्ता कई नये दिखाने लगी है

तलाश में जिसकी बेजां हम दर-दर हुए
आ मकसदें सामने सिर झुकाने लगी हैं

कैसे-कैसे गमें-दौरां से हैं गुजरे हम शैल
सहन-ए-ख़िज़ाँ नूर सबा बरसाने लगी है ।

सहने-ख़िज़ाँ--पतझड़ के देहरी
अमां का कासा--चैन संतुष्टि का कटोरा

                                                 शैल सिंह















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