कश्मीर पर कविता
ऐ कश्मीर तेरी वादियों में ज़न्नत का नूर है
अखण्ड भारत का सरताज तूं कोहिनूर है ,
ग़र ये वतन है मेरा तो तूं जान है वतन की
ग़र ये वदन है मेरा तो तूं प्राण है वदन की
ग़ैर की निग़ाह से सच हमने कभी न देखा
ग़र कहीं है स्वर्ग तो तेरी भू पे है गगन की ,
ग़र तुझसे बिछड़ गए तो जी के क्या करेंगे
अखण्ड भारत का सरताज तूं कोहिनूर है ,
ग़र ये वतन है मेरा तो तूं जान है वतन की
ग़र ये वदन है मेरा तो तूं प्राण है वदन की
ग़ैर की निग़ाह से सच हमने कभी न देखा
ग़र कहीं है स्वर्ग तो तेरी भू पे है गगन की ,
ग़र तुझसे बिछड़ गए तो जी के क्या करेंगे
साथ-साथ हम रहेंगे संग जिएंगे और मरेंगे
कभी विलग की हमने तो स्वप्न में ना सोचा
बिन तेरे अखंडता की कैसे हर्षा भला करेंगे ,
वो फूल भी क्या फूल जो चमन में ना खिले
वो फूल शूल सा लगे जो सहरा से जा मिले
तूं ख़ूबसूरत बाग़ है यह देश बागवां तुम्हारा
उर प्रेम का अंकुर उगा हम गले से आ मिलें।
कभी विलग की हमने तो स्वप्न में ना सोचा
बिन तेरे अखंडता की कैसे हर्षा भला करेंगे ,
वो फूल भी क्या फूल जो चमन में ना खिले
वो फूल शूल सा लगे जो सहरा से जा मिले
तूं ख़ूबसूरत बाग़ है यह देश बागवां तुम्हारा
उर प्रेम का अंकुर उगा हम गले से आ मिलें।
शैल सिंह
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