क्या इसी को कहते वैलेंटाइन
इश्क चढ़ा परवान ,
ना कोई जिसकी भाषा ,
ना कोई जिसकी जुबान ,
दिल से दिल की आँखों ने ,
पढ़ लीं दिल की दस्तान ,
लगे हसीन समां सारा ,
लगे हसीन जहाँ ,
लगे सुहानी रात चांदनी ,
दिन लगे है पंख समान ,
दिल की लगी का जाने ,
होता है कैसा गुमां ।
शैल सिंह
होता है कैसा गुमां ।
शैल सिंह
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