चाहे जो भी अफ़वाहें फैलाई जायं ,चाहे जो भी नुक्स निकाले जायं कोई भी असर होने वाला नहीं है ,जनता सब जानती है इशारों-इशारों में कही बातें समझ लेना चाहिए । एक सच्चे देश भक्त का समादर करना चाहिए, मोदी जी सच्चे हिन्दुस्तानी हैं जो देश की भलाई के लिए अपना सांसारिक जीवन त्याग दिया हो उस पर भी लोग उंगली उठायें ,अटल जी भी ऐसे ही राजनेता थे ,उनपे भी उंगली उठाई जाती थी ,जो सच्चा हिंदुस्तानी देश की संस्कृति के लिए हिन्दुस्तानियों को जगाएं वो सांप्रदायिक हैं ये कहाँ का न्याय है। आजम खां कह सकते हैं कि यदि सारे मुसलमान एक हो जाएँ तो कोई कुछ नहीं कर सकता ,दैनिक जागरण में पढ़ा था ,लेकिन यही बात भारतीय होते हुए भी कोई हिन्दू नहीं बोल सकता,क्योंकि वह सांप्रदायिक हो जायेगा,ये कहाँ का न्याय है ,क्या सारे हिंदुस्तानी एक हो जाएँ तो बाहरी तत्व हमारा कुछ बिगाड़ सकते हैं ,नहीं ना। अफ़सोस कभी ये एक हो ही नहीं सकते ,चाहे जितने सीमाओं के प्रहरीयों के सर कलम कर दिए जायें । जब हमारी संस्कृति और धरोहर का तहस-नहस हुआ था तब क्यों नहीं ऐसी ही आवाजें उठी थीं तब कहाँ ज़मीर मर गया था जब हम निर्बल थे ,आज हम सबल हैं तो क्यों नहीं वही करने दिया जाता जो वर्षों पहले हमारी संस्कृति के साथ हुआ था। सत्यता कि तह में जाकर आपसी सहमति से हर मुद्दे को सुलझा लेना चाहिए ,अनर्गल तूल देकर समस्याओं के निदान की बजाय देश द्रोही हो गयी हैं तमाम पार्टियां ,कुर्सी की राजनीति ने सच्चे हिंदुस्तानी का फर्ज निभाने के लिए भी ज़मीर गिरवी रख लिया है । अपने ही घर में हम लोग उपेक्षा कि जिंदगी जियें ,कम से कम अब तो हम लोगों को चेतना चाहिए ,भारतीय जनता पार्टी का अलख किसके लिए है ,जनता क्यों नहीं समझती ,मुझे बेहद अफ़सोस है कि मैं मेरा परिवार कमल को वोट नहीं दे पाये कतिपय कारणों से ,पर हृदय और भावना सदैव भारतीय जनता पार्टी के साथ है । क्योंकि कि हम सच्चे भारतीय हैं सर्वोपरि देश है उसके बाद निजी कुछ .... ।
ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
बुधवार, 9 अप्रैल 2014
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