ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
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दिखा दो जोश तरुणाई का
ऐ भारत के मेरे नौजवानों ललकारो अपने यौवन को बाधाओं,व्यवधानों को काटो, संवारो अपने लक्ष्यों को, भरो यौवन में साहस,संकल्प करो अद्भुत क...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए । ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा तुझे दिल में नज़र ...
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रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई बहुत सुहावन अति मनभावन सावन का महीना व्रत,त्यौहारों का पावन मास सावन मास नगीना । सुमधुर स्व...
बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
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