रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कुछ शेर

कुछ शेर 



तड़पा लो जी भरकर ये तेरे इख़्तियार में है
मुझे तो तमाम उम्र तेरा इंतज़ार प्यार में है।

हालातों के हश्र का कौन सा सुबूत पेश करूँ
पत्थर के बुत सच की तासीर क्या समझेंगे
कुछ मुक़द्दर से कुछ ज़िंदगी से फिर ख़ुलुश दे
शौक से दिल की बर्बाद तबाहियों से खेलेंगे ।

थम जाती राह ज़िंदगी की सफ़र में अक्सर
गुजरते हुए उन ख़यालों,ख़्वाब के मुक़ाम पर
कहीं वो तो नहीं उनकी तस्वीर तो नहीं,ठहर
जाती है,शाद हो मायूस ज़िंदगी हर नाम पर।

निग़ाहें नाज़ से दर बदर ढूंढ़ती रहीं उनको
जवां हसरतें झूमीं नशेमन,महफ़िल मगर 
बुझ गए जल चराग़ भी बज़्म के इन्तज़ार कर
सो गए रूठ जलवे भी क़ायनातों के बेख़बर।

जीते हैं कैसे किस तरह ये सवाल ना पूछो
वरना मायूस ज़िंदगी फिर मुरझा जाएगी
इक बेवफ़ा यार की दी बेजोड़ अमानतें हैं ये
कुरेदने से यादें फिर शोला भड़का जायेंगी।

काश ! इक फरेबी के बेजां छलावे में आकर
बेइंतहा प्यार न उस पर ऐतबार किया होता
ना वो लूट मन की बहारें झूठी मोहब्बत में
मेरी ज़िंदगी इस क़दर पतझार किया होता।

टूट कर भी दिल देता है दुवा वो आबाद रहें
इस सोख़्तगी में कैसे गूंज हो मुस्कराहट सी
गिरतीं हैं चिलमनों से जो 'शबनमी बूंदें शैल'
उन कुहासों में ग़म छुपा लेने की आदत सी ।
                                                                  
सोख़्तगी--ग़म 

शैल सिंह













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