मन में किसका रूप धरोहर
हृदय गुफा एक जंग है
पथिक मिलन स्थल है
यौवन की मदिरा में
मानस की कली चटकती है
मन में किसका रूप धरोहर
एकमात्र अवलम्बन है
उठती टीस हृदय में
अरे यह किसकी मसलन है
एक कुहासा छंटता है
फिर एक अनुराग पनपता है
कहीं सुकुमार क्षणों में
कल्पना का गीत उभरता है
चाह जिगर की बढ़ती है
प्राण यहाँ अकुलाते हैं
अरे वैरागी वहां विनोदी को
कितने छाँव लुभाते हैं
अभी तृषा समाप्त नहीं
पलकों में सपंने सजते हैं
जीवन इतिहास का परिचय है
इसे ही मिटना कहते हैं
पथिक मिलन स्थल है
बिन अतिथि निष्प्राण प्रेम
कितना व्यथित विकल है
आँखों में उन्माद लिए
रूप सिंगार बिलसती हैयौवन की मदिरा में
मानस की कली चटकती है
मन में किसका रूप धरोहर
एकमात्र अवलम्बन है
उठती टीस हृदय में
अरे यह किसकी मसलन है
एक कुहासा छंटता है
फिर एक अनुराग पनपता है
कहीं सुकुमार क्षणों में
कल्पना का गीत उभरता है
चाह जिगर की बढ़ती है
प्राण यहाँ अकुलाते हैं
अरे वैरागी वहां विनोदी को
कितने छाँव लुभाते हैं
अभी तृषा समाप्त नहीं
पलकों में सपंने सजते हैं
जीवन इतिहास का परिचय है
इसे ही मिटना कहते हैं
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