गुरुवार, 17 जनवरी 2013

मन में किसका रूप धरोहर

मन में किसका रूप धरोहर 


हृदय गुफा एक जंग है
       पथिक मिलन स्थल है
बिन अतिथि निष्प्राण प्रेम                 
       कितना व्यथित विकल है
आँखों में उन्माद लिए 
      रूप सिंगार बिलसती है
यौवन की मदिरा में
     मानस की कली चटकती है
मन में किसका रूप धरोहर
     एकमात्र अवलम्बन है
उठती टीस हृदय में
    अरे यह किसकी मसलन है
एक कुहासा छंटता है
    फिर एक अनुराग पनपता है
कहीं सुकुमार क्षणों में
    कल्पना का गीत उभरता है
चाह जिगर की बढ़ती है
    प्राण यहाँ अकुलाते हैं
अरे वैरागी वहां विनोदी को
    कितने छाँव लुभाते हैं
अभी तृषा समाप्त नहीं
    पलकों में सपंने सजते हैं
जीवन इतिहास का परिचय है
    इसे ही मिटना कहते हैं 

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