निस्पंद से पड़े
हे कर्णधार साईं मंझधार नाव पार लगा दो
दीन,हीन,मलीन पे महिमा बरसा अपार दो ।
कभी प्रार्थनाओं का तुझपर असर ना हुआ
क्या कमी थी प्रभु भक्ति,भाव,अर्चनाओं में
के मेरी वेदनाओं का तुझको खबर ना हुआ ।
दिन रात तेरे अक्स को उतार कल्पनाओं में
पूजती रही मन ही मन शाश्वत भावनाओं में
तुम पूजा ना सके साध ज़िन्दगी की एक भी
क्या कमी रही बताओ ना मेरी साधनाओं में ।
कब लोगे सुध सरकार कब बरसाओगे कृपा
दर्द से आराम नहीं काम करती दवा ना दुआ
अपने आभामंडल से कर दो संतृप्त मन प्रभु
कब प्रसन्न हो बहाओगे संभावनाओं की हवा ।
क्या करूं तुझको अर्पण करें कैसे स्तुति तेरी
निस्पंद से पड़े ना सुनते क्यों कोई अर्जी मेरी
तुम्हीं सृष्टि के रचयिता तुम भाग्य के विधाता
तुम्हारा लेखा जोखा चाहे जो करो मर्ज़ी तेरी ।
शैल सिंह
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