“ ठंडी के मौसम पर कविता “
सर्दी तूं बड़ी बेदर्दी है लगती बर्फ़ से भी तूं ठंडी है
धुंध में लिपटे सूर्य देवता नहीं किसी से हमदर्दी है ,
कुहासों से टपकतीं बूँदें दिखतीं रूई के फाहों सी
काँपते बूढ़े, बच्चे,जवान ठिठुरन टीसती घावों सी ,
मुँह उगले सिगार सा धुँआ देगी कब गर्मी दस्तक
पल-पल कॉफी,चाय के गरम चुस्कियों की तलब ,
रोज़ नहाना बड़ा अखरता याद आ जाता बचपन
ठंडी के मौसम में होता सूरज का भी दुर्लभ दर्शन ,
मख़मली हवा भी नहीं सुहाती चुभती तीरों जैसी
किट-किट बजते दाँत काम करे ना मफ़लर,जर्सी ,
कुहरे का धारे अंगरखा फ़िज़ा ठंड से है अनबूझ
शीत लहर का भी प्रकोप उस पर बारिश की बूँद ,
ढल जाती साँझ भी जल्द होती लम्बी-लम्बी रात
पक्षी भी दुबक जाते नीड़ में देती ऐसी सर्दी मात ,
लस्सी,शरबत,आइसक्रीम,दही लिए तरसता मन
खाँसी,जुकाम से सभी बेज़ार उसपे कोरोना बम ,
अलाव तापती मजलिसें याद आता अपना गाँव
छिम्मी छिलती आजी,काकी आँगना वाला ठाँव ,
नये भात के साथ निमोना घुघनी औ रस कच्चा
बैठकर खाना गुनगुनी धूप में रेवड़ा,चिउड़ा,गट्टा ,
कहाँ गया वो दौर सुहाना जहाँ थीं ख़ुशियाँ हर्ष
याद आते वे ख़ूबसूरत दिन अब दुनियाँ का दर्द ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 23 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत-बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन!
जवाब देंहटाएंठंडी ने तो रूह कपा रखी है!
हड्डी तोड़ ठंड पड़ रही है उस पर से बारिश!
ऐसी में तो यही सहारा है
नये भात के साथ निमोना घुघनी और रस कच्चा
बैठकर खाना गुनगुनी धूप में रेवड़ा,चिउड़ा,गट्टा ,
मनीषा जी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंढल जाती जल्द ही साँझ होती लम्बी-लम्बी रात
जवाब देंहटाएंपक्षी भी दुबक जाते नीड़ में देती ऐसी सर्दी मात
बहुत बढ़िया शैल जी 👌👌👌। इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति के क्या कहने। ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं आपको 🙏🙏
धन्यवाद रेणु जी सर्दी में बचकर रहिए
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