बारिश पर कविता
पपीहा,कोयल,मयूर अधीर,हैं अभिवादन को तेरे ,
किससे भेजूँ पाती तुमतक,कैसे भेजूँ तुम्हें संदेशा
रूख से तेरे कहीं लगे न मॉनसून का मेघ अंदेशा
क्यों सज सँवर कर ऐंठी हो,मेंह लगाकर काजल
क्यों अनशन पर बैठे, खोलो द्वार हृदय के बादल ,
बारिश की बूँदों का भेजो, घटा ज़रा नज़राना तुम
रेती से हाथ मिलाने का,ढ़ूंढ़ कर कोई बहाना तुम
मेहरबानी कर बरसो आ बादल,तपन भगाओ दूर
धरती का आँचल है सूखा,सपने हो रहे चकनाचूर ,
कैसे करें मनुहार तुम्हारा,बहुत दूर देहात तुम्हारा
कैसे तोड़ें दम्भ तेरा,हो पराजित अभिमान तुम्हारा
सूरज आतप बरसाता, फूट रही पृथ्वी से चिन्गारी
अभिशप्त सा लगता जीवन, सूख रही हैं फुलवारी ,
सभी कुएं प्यासे नीर लिए,सागर उदासा क्षीर लिए
तरस रही सीपी की मोती,स्वाती की इक बूँद लिए
हे इंद्रदेव अब कृपा कर बरसें,दहक रही है धरती
फलक निहारते ठूँठे दरख़्त,सब खेत पड़े हैं परती ,
जनजीवन बेहाल तपिश से,मेघ मल्हार सुनाओ ना
वृष्टि के अविच्छिन्न धार से,अतृप्त तृषा मिटाओ ना
पावस की पहली सौगात से,धरा को सरसाओ मेघ
भर दो नथुनों में सोंधी गंध अब नहीं तरसाओ मेघ ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
बहुत-बहुत आभार आपका पांच लिंगों का आनन्द में मेरी कविता को जगह देने के लिए पम्मी सिंह जी धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंमेहरबानी कर बरसो आ बादल,तपन भगाओ दूर
जवाब देंहटाएंधरती का आँचल है सूखा,सपने हो रहे चकनाचूर ,
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बहुत सुंदर। सार्थक सर्जन के लिये आपको आभार।
बहुत-बहुत आभार आपका
हटाएंबेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
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