बहुत खूबसूरत ऑंखें तुम्हारी
बहुत हुनरबाज संवाद करती सी मासूम ऑंखें तुम्हारी
मस्तानों की महफ़िल में चर्चे बहुत ऐसी ऑंखें तुम्हारी ।
खंजन नयन सी चंचल कमल-नयनी सी ऑंखें तुम्हारी
आकर्षक,सम्मोहक चपल मृगनयनी सी ऑंखें तुम्हारी
शोख़ चमकीली रंगीन पुतलियां नचाकर ऑंखें तुम्हारी
कर देतीं अद्भुत भंगिमाओं से सम्मोहित ऑंखें तुम्हारी ।
बहुत कुछ घटा सी बरस कह देतीं घनेरी ऑंखें तुम्हारी
बयां हो न जो लफ़्ज़ों से उसे बोल जातीं ऑंखें तुम्हारी
मदिरा छलकातीं मदिरालय सी मतवाली ऑंखें तुम्हारी
फ़रिश्ते भी बहक जायें नीम-बाज़ उन्मद ऑंखें तुम्हारी ।
समंदर सी शान्त,विशाल झील सी नीली ऑंखें तुम्हारी
जाम छलका कर जातीं मदहोश शरबती ऑंखें तुम्हारी
कभी मंत्रमुग्ध कर देतीं काली करिश्माई ऑंखें तुम्हारी
कभी गहन काजल सजी लगीं रहस्यमई ऑंखें तुम्हारी ।
कभी राज गहरा छिपा कर जातीं मायूस ऑंखें तुम्हारी
कभी दिल का रास्ता बता देतीं जुबां बन ऑंखें तुम्हारी
कितनों को कर जातीं घायल कटारी सी ऑंखें तुम्हारी
कभी करा देतीं वबाल खंजर चला हसीं ऑंखें तुम्हारी ।
दृगों की कश्ती में ऐसे भंवर,उलझा लेतीं ऑंखें तुम्हारी
गिराकर अदाओं की बिजली कहर ढातीं ऑंखें तुम्हारी
किसी को भी बना दें दीवाना क़ातिलाना ऑंखें तुम्हारी
शायरों के दिलकश ख़यालों का ख़ज़ाना ऑंखें तुम्हारी ।
फ़रिश्ता---देवदूत
नीम-बाज़---अधखुला
गहन: इतना गहरा जिसकी थाह जल्दी न मिले
शैल सिंह
सर्वाधिकार में
लगता है किसी को मेरी ये कविता पसंद नहीं आई
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