" भोली तस्वीरें उद्वेलित कर देती हैं "
भोली तस्वीरें उद्वेलित कर देती हैं उन्हें भूल जाने की जबसे है जिद ठान ली यादें और ज्यादा मुखर हो सताने लगीं । कभी चंचल पवन खोल अन्तस के द्वार ज़िस्म की उनके ख़ुश्बू महका गई कभी अम्बर से आँगन उतर चाँदनी मन गुदगुदा तन को दहका गई । जिन यादों के संग जीने की आदत सी है वही पलकों पे शोख़ हो झिलमिलाने लगीं उन्हें भूल जाने की जबसे है जिद ठान ली यादें और ज्यादा मुखर हो सताने लगीं ।। कभी एहसास उनके छुवन की मेरी सोई आँखों को झकझोर जगा देती हैं कभी अधरों पे चुम्बन की देकर मुहर यादें सहला विभोर कर सुला देती हैं । नेह से चूम भरना उनका आलिंगन में यादें फिर तारिकाओं सी जगमगाने लगीं उन्हें भूल जाने की जबसे है जिद ठान ली यादें और ज्यादा मुखर हो सताने लगीं ।। कभी संग बिताए हुए लम्हों की स्मृतियां ताजा हो बिचलित कर जाती हैं कभी जज़्बात ख़ुद के ही ख़ुद से पिघल दृगों को अश्रुओं से सिंचित कर जाती हैं । कुछ सहेजी हुई दराजों से तहरीरें झांक चुहल करती...