जब-तब यादों का सोता उमड़ कर
कहावत है तन बूढ़ा तो हो जाता है
पर सच ,मन कभी बूढ़ा नहीं होता ,
पछुवा,पूरवा,भाटा,तूफान,बवण्डर
आँधियाँ ना जाने कैसी-कैसी आईं
फिर भी हृदय में जलता स्मृति का
कभी अड़ियल दीया बुझा ना पायीं ,
हिफ़ाज़त से अतीत को तस्वीरों में
घर की दरों-दीवारों सजाये रखा है
मैंने बचपन की यादों के हरेक पन्ने
ह्रदय के तलागार में दबाये रखा है ,
जब-तब उमड़कर यादों का सोता
पर सच ,मन कभी बूढ़ा नहीं होता ,
पछुवा,पूरवा,भाटा,तूफान,बवण्डर
आँधियाँ ना जाने कैसी-कैसी आईं
फिर भी हृदय में जलता स्मृति का
कभी अड़ियल दीया बुझा ना पायीं ,
हिफ़ाज़त से अतीत को तस्वीरों में
घर की दरों-दीवारों सजाये रखा है
मैंने बचपन की यादों के हरेक पन्ने
ह्रदय के तलागार में दबाये रखा है ,
जब-तब उमड़कर यादों का सोता
एकान्त में आर्द्र नयन कर जाता है
खोल झरोखा दिखा परछाईयों को
खुशियों से सूना कोना भर जाता है ,
जीवन में जाने कितने आये गए पन
पर सबसे सुन्दर अपना बचपन था
यौवनपन की कुछ मीठी यादें साथ
खोल झरोखा दिखा परछाईयों को
खुशियों से सूना कोना भर जाता है ,
जीवन में जाने कितने आये गए पन
पर सबसे सुन्दर अपना बचपन था
यौवनपन की कुछ मीठी यादें साथ
संग इस पन में केवल चिन्तन आह,
दिल बहका जी देख पुरानी तस्वीरें
दिखा करते कैसे जवानी में हम भी
पर सामने खड़ा यह हठात आईना
बता गया सच कहाँ आ गए हम भी ,
कैसा-कैसा विभिन्न रूप और रंगत
धारा है जीवन में यह माटी का तन
पर परिस्थितियों के हर कैनवास पे
ख़ुद को सजा निख़ार कर रखा मन ,
कैसा-कैसा विभिन्न रूप और रंगत
धारा है जीवन में यह माटी का तन
पर परिस्थितियों के हर कैनवास पे
ख़ुद को सजा निख़ार कर रखा मन ,
चाँदी सी सफेदी चमक रही केश में
तन कृशकाय हुई मलिन यह काया
मद्धिम हो गई रौशनी भी आँखों की
पर मन पर अभी भी ख़ुमार है छाया ।
शैल सिंह
शैल सिंह
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