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बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रही है  अब तो ख़ुशी के दिन थे आये ग़म से मिला रही है। ना लुत्फ़ अंजुमन में ना महफ़िलों में रंगत दिल बुझा-बुझा सा लगे सांय-सांय हर तरफ ना कुछ ख्वाहिशें बचीं ना कुछ अरमान बाकी है  ज़िन्दगी होगी बसर किस तरह सोच मन में उदासी है। उदासी का कोई सबब नहीं क्यों बे-हिस लगे ज़िन्दगी  शाम लगे धुआं धुआं कोई ऐसा नहीं हो जिससे दिल्लगी  कैसी अकथ है वेदना कि अशान्त और विकल रहता मन समझ न आता ऐसा क्या संताप कि विचलित रहता  हरदम । क्यूं मायूस है ज़िन्दगी जाने किसकी है तलाश  खाली-खाली सा दिन लगे खाली-खाली सी रात अजीब-अजीब से उठते दिल में ख़यालात ऐ ज़िन्दगी अब बस कर ना कर ऐसे हताश। सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

वाह रे गर्मी

वाह रे गर्मी--- भीषण गर्मी का आक्रमण  किसी यन्त्रणा से कम नहीं  ताप सहन करना मुश्किल  अलसाई लगे दोपहरी  बादल का आसार नहीं  मेघ से चलो करें चिरौरी  झुलस रहा है कन-कन  कब बरसोगे घनश्याम  तपन से दरक रही धरती  लगे नहीं शीतल सी शाम  सूरज का पारा बढ़ता जाये कोमल काया झुलसाये सूखी नदियां,नाले,ताल,कछार  गर्मी ने कर दिया जीना दुश्वार  गर्म हवाएं आग बरसायें  विरान हुआ चिड़ियों का खोता जल बिन मछली तड़प रही  कैसे लगायें बिन पानी गोता तरूवर भी हाथ खड़े कर दिए  नहीं कहीं शीतल सी छाया पीपल बरगद भी मुर्झाये नहीं उन्हें भी पहले सी माया उमड़ घुमड़ बरसो ना मेघ लगा दो गर्मी में सेंध  क्यों नाराज़ हो बरखा रानी  झम झमाझम बरसा दो पानी । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

रिटायरमेंट के बाद

रिटायरमेंट के बाद-- सोचा था ज़िन्दगी में ठहराव आयेगा  रिटायरमेंट के बाद ऐसा पड़ाव आयेगा  पर लग गया विराम ज़िन्दगी को  अकेलापन,उदासी का चारों तरफ घेरा मौसम उदास होता है या मन समझ नहीं आता दिन कचोटता बीतती शाम तनहा तनहा  कैसे कट रहा ज़िन्दगी का हर एक लमहा सेवानिवृत्त के बाद लगता जीवन कुछ रहा नहीं  नौकरी थी तो कितने लोग साथ थे हमारे  अब है केवल तन्हाई न कोई संगी न सहारे बस दो काम खाना और सोना  ना बचा कोई काम ना धाम बस आराम  ना कोई शौक बचा ना कोई इच्छा  ना पहनावे ओढ़ावे का अंदाज रहा ना तो अब घूमने फिरने की वो ललक बहुत कचोटता अकेलापन,उदासी,रिटायरमेंट कितने यादगार पल हैं पर आज सब निष्काम  कितनी शानदार थी नौकरी वाली ज़िन्दगी  व्यस्त थे मस्त थे स्वस्थ थे हॅंसने बोलने के लिए लोग तो थे  आज जैसी वीरानी तो नहीं थी बोरियत सी जिन्दगानी तो नहीं थी विश्राम भी रास आता नहीं  सेवानिवृत्त का वरदान भी सुहाता नहीं  कहां बड़े बड़े बंगले खुला खुला सहन और अब अपार्टमेंट का बंद बंद घुटा घुटा कक्ष मन में निराशाजनक और नकारात्मक बातों का आना रिटाय...

नज़्म ----

नज़्म --- अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको  ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे । खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं दूर कितना भी रहूॅं तेरे पास नज़र आऊं । मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम  आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम । अजनवी होके भी कितने करीब आ गये रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

नज़्म ---

अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको  ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे । खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं दूर कितना भी रहूॅं  तेरे पास नज़र आऊं । मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम  आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम । अजनवी होके भी कितने करीब आ गये रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

ये तनहाई

ये तनहाई -- सुबह तनहा शाम तनहा  तनहा ज़िन्दगी का हर लमहा  परछाईंयां भी अब डराने लगी हैं सुख चैन ज़िन्दगी का चुरानें लगी हैं  कैसे कटेगी ज़िन्दगी की बाकी उमर  तनहा-तनहा लगता आठों पहर ना जाने किसकी लग गई नज़र  नहीं तन्हाई का अब कोई हमसफ़र  अपने चारों तरफ तन्हाई का मेला भीड़ भरे शहर में भी फिरते अकेला  न महफ़िल न मयखाना ना कोई खेला न कोई संगी संम्बन्धी ना कोई चेला गुज़र रही ज़िन्दगी अकेला अकेला।  शैल सिंह 

ग़ज़ल----

 ग़ज़ल---- जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो वो आॉंखों से समझ लेना कि करती हूँ मोहब्बत कितना तुमसे वो समझ लेना  मुझको दीवानगी की हद तक मुहब्बत हो गई तुमसे  मत कुछ पूछना जो कहें ख़ामोशियाँ वो समझ लेना । तेरी हर ज़िक्र पर हर शब्द का शायरी में ढल जाना  तुझसे बात करते वक़्त नज़र नीची करके शरमाना  बार-बार मेरी तरफ़ तेरा देखना मेरा यूं घबरा जाना  अनजाने ही फिर इक दूजे की निग़ाहों में खो जाना । मोहब्बत का सुरूर कैसा न जानते तुम न जानें हम  कितनी मुश्किल भरी राहें न जानते तुम न जानें हम चल पड़े बेफिक्र इस राह दहर ने जीना किया दुश्वार  कैसे नयनों ने किया शिकार न जाने तुम न जाने हम  । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

उफ्फ ये गर्मी --

उफ्फ ये गर्मी -- कड़ी धूप पथिक बिचारा ढूंढ रहा तरूवर की छांव  तनिक छंहा ले विश्राम कर कहीं नहीं है ऐसा ठांव। प्रकृति संँग खिलवाड़ हो रहा काटे जा रहे हैं जंगल जल-कल विटप व्यर्थ कर,हो रहा बस अपना मंगल। अम्बर उगल रहा है आग तपिश से त्रस्त हुई धरित्रि प्रकृति से छेड़छाड़ देखकर दुख से दुखित हुई सृष्टि। सूरज अग्नि का बम बरसा रहा पसीने से तर-बतर तेज धूप में बाहर निकलें कैसे ऐसी गर्मी लगे जहर। पछुआ पूरवा की हवा बहे प्रचंड सूखे पेड़ औ पत्ते पंछियों के खोते उड़े,उड़े जा रहे मधुमक्खी के छत्ते। अटा धूल से आंगन छत ओसारा चिलचिलाती धूप हलक प्यास से तर होती नहीं ना लगे गर्मी से भूख। सूनी गलियां सूना दोपहर सब एसी, कूलर में दुबके  शहर की खामोशी भाए ना चलो गांव बगीचे में बैठें। प्रदूषण बढ़ रहा शहर में विकसित ऐसा हुआ शहर गांवों को गंदा कहने वाले जांयें देखें खुशहाल नगर। सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

ज़िन्दगी पर कविता

ज़िन्दगी पर कविता  दो पल की ज़िंदगी है दो पल जियें ख़ुशी से हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से। बचपन में खेले हम कभी चढ़के आई जवानी फिर आयेगा बुढ़ापा ख़त्म फिर होगी कहानी न कुछ लेकर आये थे न ही कुछ लेके जायेंगे न होगा दिन ऐसा सुहाना न रात ऐसी सुहानी। दो पल की ज़िन्दगी है दो पल जियें ख़ुशी से हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से। बीता कल न कभी आया न ही आने वाला है  बस आज में जियें यह पल भी जाने वाला है। कल की फ़िक्र में ना कभी आज को गंवाइए  कर मीठी मीठी बातें रूठों को मनाने वाला है। दो पल की ज़िंदगी है दो पल जियें ख़ुशी से हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से। हम मीठी बोली बोलें घोलें रिश्तों में मिठास  गुनगुनाते जियें ज़िन्दगी महकायें हम सुवास हम लुटायें सब पर नेह नये सम्बन्ध बना कर  सफ़र ज़िन्दगी का चलें मिलकर सबके साथ। दो पल की ज़िंदगी है दो पल जीलें ख़ुशी से हंसकर मिलें ख़ुशी से खुलकर हंसें सभी से। जवानी तो काटी सुनहरे भविष्य की आस में  पर भविष्य बुढ़ापे का रूप धार खड़ी पास में  लौट न आने वाले लम्हों की याद में खुश रहें ...

शायरी

शायरी--- निगाहों के रस्ते दिल में उतरकर बिन कहे जाने क्या से क्या कह गये रूह तक मेरा अपने वश में कर लिया  जाने क्या क्या दिल पर पैगाम लिख गये। ऐ ख़ुदा उसको भूलना गवारा नहीं  उससे मिला दे तो तेरा क्या जायेगा  थोड़ा करले फिक्र मोहब्बत वालों की इतनी सी कर दे खता तेरा क्या जायेगा। मेरी चाहत का जादू तुझपे ऐसा चला कि तुम एहसास दिल में छुपा ना सके जो दिल की धड़कीं धड़कनें मेरे लिए  आवाज़ मुझ तक ना आने से छुपा सके। मत इस तरह मेरे ख्वाबों में आया करो मचल उठता है दिल मोहब्बत के लिए  मत सांसों में इस तरह आया जाया करो अधर फड़क उठते हैं गुनगुनाने के लिए। तेरी मोहब्बत में दुनिया का हर रंग फीका तेरी सोहबत में आकर जाना क्या चीज़ है  ख्वाब बनकर तुम आओ ना मेरे ख्वाबों में  भटके मुसाफ़िर नहीं तुम बहुत अज़ीज़ हो। तुझे पाकर दुनिया का सब कुछ पा लिया  अब ख़ुदा से कुछ मांगने की जरूरत नहीं  भले ही अब चाहे ख़ुदा हो नाराज मुझसे  जब तुम्हीं मिल गये किसी की जरूरत नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से कुट्टी-मिठ्ठी झूठा मूठा बहाना वक्त की गर्द में अल्हड़ भरी मस्ती खुशियों का खजाना जाने कहाॅं खो गया प्यारे बचपन का प्यार भरा जमाना।   सखिन संग आंख मिचौली नीम वृक्ष की कड़वी निबौरी चाॅंद छूने की ख्वाहिश सपनों की उड़ान पतंग की डोरी ना कल की फिक्र ना शिकवा किसी से ना कोई निहोरी ना गर्मी, लू की परवा तितली उड़ाना घूमना खोरी-खोरी। जब जवां हुए शान्ति खोये गयी आजादी बचपन वाली मां के आॉंचल का ममत्व खोया रह गया पुलाव ख्याली परिजनों का दुलार खो गया व्यंजनों के खुश्बू की थाली पापा के कांधे का मस्ती खोये झूला पड़ा नीम की डाली। बचपन की खट्टी-मीठी यादें बचपन कितना सलोना था बारिश में कागज की नाव बहाना हर मौसम सुहाना था हॅंसने,रोने की वजह ना कोई न कोई नाहक फ़साना था हर रिश्ते में अपनापन था ना पराया ना कोई बेगाना था। उम्र के इस पड़ाव पर आ कर यादें बचप...

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो  प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार, खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण  सेमल पुष्पों ने रंगोली रच धरा किया मनभावन  मंद सुगन्धित हवाओं से वातावरण हुआ गुलजार  नववर्ष, नवसंवत्सर का करना विशेष स्वागत सत्कार । प्रकृति है प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित है बूटा-बूटा  धरा-गगन चहुंओर नव पल्लव से सुगन्ध है फूटा मन में उछाह उत्सुकता भरी प्रतिक्षा है शुभ होगा  सूर्यवंशी रामलला का कोसलपुरी में सूर्यतिलक होगा । यह नवल वर्ष सनातनी गौरव का प्रतीक है इसदिन सूर्य करेंगे राघव का अभिषेक वर्णित है नवान्न फसलों से भंडार भर किसान आह्लादित हैं  है सनातनियों का पर्व रामनवमी क्यों राम विवादित हैं । प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर झूम रही मानो पुष्पों,पल्लवों फलों से वृक्ष आच्छादित हैं मानों  नूतनं वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की चतुर्दिक जय हो वैदिक सनातन नूतनवर्ष हर भारतीय को मंगलमय हो । पर्वों शुभ मुहूर्तों का मास चैत्र महिना आया नव दुर्गे की उपासना का नव दिवस मन हर्षाया द्वारे ध्वजा लगा स्वास्तिक बना रंगोली है सजाना नवसंवत्सर के महत्व ...
कल की आरजू में आज को गंवाना नहीं अच्छा ना जाने क्या हो कल ये तो कोई नहीं है जानता  आज कभी लौटकर नहीं आता है आज में जीयें कल न जाने क्या घट जाए कोई नहीं है जानता। शैल सिंह 

होली पर कविता

होली पर कविता ---- हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई  प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई, मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार  बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार  पक फसलें हैं तैयार चढ़ा ऋतुपति का मधु खुमार, द्वारे-द्वारे पर अनुगूंज,चौपाल,उलारा,बैठकी धमार बौर आ गई अमराईयों में कूहुकने लगीं कोयलियां मादक बहने लगी बयार फूटे कंठ से स्वर लहरिया कहीं बुज़ुर्ग जवान हो बांधें समां बैठे नगर दुवरिया तान छेड़ें फाग के गांव जवार लिए मृदंग झंझरिया, दिन बीतता मठरी गुझिया में रात पूआ पकवान में  भांग,ठंडाई पीस-पीस बैठकी गायें कंहार दलान में  हरि की होली बरसाना में शिव की होली मसान में  इतने हर्षौल्लास का पर्व होली नहीं कहीं जहान में, हाथ गुलाल किसी के कंचन भरी केसर पिचकारी कहीं नव उल्लास से नंद देवर सुनें भावज से गारी उर के तार हुए झंकृत पिया ने रंगों से गात संवारी रसियों ने रंग ऐसा डारा कि वस्त्र हो गये गुलकारी। सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह