ख़ुमार फागुन का
करती निहोरा कंत
पुरवा लगे अनन्त
आ जा परदेशी कंत ,
मन पर चढ़ गया रंग फागुन का
तन रंग गया वसन्ती रंग
सराबोर भींजे रोज चुनरिया
हर रंग में चोलिया अंग ,
बदला मौसम का ढंग
पुरवा लगे अनन्त
काहे बने हो संत
आ जा परदेशी कंत ,
मंद-मंद बहे पछुवा रसीली
गुलाबी सिहरन भरे उमंग
ग़जब मारे पतझर मुस्की गुईंया
चौपड़ खेले बहार के संग ,
मधुमासी पी के भंग
पुरवा लगे अनन्त
काहे बने हो संत
आ जा परदेशी कंत ,
पीत वसन में गहबर सरसों
लगे नई नवेली नार
कलियों ने घूँघट पट खोला
करके मोहक सिंगार पटार ,
रसिक मिज़ाज भृंग
रसीली तितली के संग
काहे बने हो संत
आ जा परदेशी कंत ,
नरम भये तेवर पूस माघ के
मधुमासी पी के भंग
पुरवा लगे अनन्त
काहे बने हो संत
आ जा परदेशी कंत ,
पीत वसन में गहबर सरसों
लगे नई नवेली नार
कलियों ने घूँघट पट खोला
करके मोहक सिंगार पटार ,
रसिक मिज़ाज भृंग
रसीली तितली के संग
काहे बने हो संत
आ जा परदेशी कंत ,
नरम भये तेवर पूस माघ के
ठंडी शनैः-शनैः निष्पन्द
नया कलेवर ले पाहुन आये
सुस्त शिराओं में उठे तरंग ,
आ जा लगा के पंख
पुरवा लगे अनन्त
काहे बने हो संत
मोरे परदेशी कंत ।
शैल सिंह
नया कलेवर ले पाहुन आये
सुस्त शिराओं में उठे तरंग ,
आ जा लगा के पंख
पुरवा लगे अनन्त
काहे बने हो संत
मोरे परदेशी कंत ।
शैल सिंह
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