हमारे गाँव की होली
बदलते मौसम की तरह
बदल गए सब रीत रे
कहाँ वो फगुवा बैठकी
कहाँ जोगिरा गीत रे ,
ढोल,मंजीरे,झाल थापों पर
कहाँ अब हुरियारों की टोली
झूमते,नाचते,गाते कबीरा
कहाँ अब हम जैसे हमजोली ,
कहाँ अब हम जैसे हमजोली ,
गली,मोहल्ले की भऊजाई
खोल झरोखा ताक-झांक में
नटखट देवरा कब गुजरेगा
साँझ-सवेरे इसी फ़िराक़ में ,
डाल घूँघट मुख दौड़ें दुवारे
मुट्ठी मा करिया रंग दबाय
बुरा ना मानो होली है कहि
बहुवें,बुढ़वों को देवर बनाय ,
कीचड़ सनी बाल्टी उँड़ेलें
नेह से माथ लगा के रोली
सारा रा रा होली है धुन पे
करें चुटकी काट ठिठोली ,
भिनुसारे से ही भांग-ठंडई
ओसारे,अंगना नाऊ,कंहार
रगड़-रगड़ सिलबट्टे घिसें
सखी गा-गा मस्त मल्हार ,
करूँ अपने ज़माने की बातें
आज की नई पीढ़ी दे घघोट
पश्चिमी सभ्यता निगली जैसे
गमछा,धोती ,जनेऊ ,लंगोट ,
जब-तब यादें बहुत सताती
घिर आती हैं आँखों में घटा
रिश्तों में जो तब मिठास थी
कहाँ अब वैसी रंगों में छटा ,
कीचड़ सनी बाल्टी उँड़ेलें
नेह से माथ लगा के रोली
सारा रा रा होली है धुन पे
करें चुटकी काट ठिठोली ,
भिनुसारे से ही भांग-ठंडई
ओसारे,अंगना नाऊ,कंहार
रगड़-रगड़ सिलबट्टे घिसें
सखी गा-गा मस्त मल्हार ,
करूँ अपने ज़माने की बातें
आज की नई पीढ़ी दे घघोट
पश्चिमी सभ्यता निगली जैसे
गमछा,धोती ,जनेऊ ,लंगोट ,
जब-तब यादें बहुत सताती
घिर आती हैं आँखों में घटा
रिश्तों में जो तब मिठास थी
कहाँ अब वैसी रंगों में छटा ,
प्रीत के रंग में रंगे वो रिश्ते
बदरंग होकर गए महुलाय
वक़्त ने तेज़ी से रफ़्तार धरी
इक्क्सवीं सदी गई सब खाय ।
शैल सिंह
बदरंग होकर गए महुलाय
वक़्त ने तेज़ी से रफ़्तार धरी
इक्क्सवीं सदी गई सब खाय ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें