सोमवार, 21 मार्च 2022

“ ये नभचर,दरख़्त हमारे जीवन के अंग हैं “

 ये नभचर,दरख़्त हमारे जीवन के अंग हैं 


जाने कहाँ गये सब शहर के परिन्दे
आती नहीं रास इन्हें भी शहर की हवा
बदल से गये हैं शहरों के रंग और रूवाब 
जहाँ छांह सुकूं की ना भली सुबह की फ़ज़ा ।

पलायन को मजबूर हुए हैं बेसहारे 
आशियाने की खोज में भटकते बेचारे
बेजुबान रंग-बिरंगे ये पखेरू आस्मान के
करें कहाँ रैन बसेरा हुए बाग़  बियावान सारे ।

चुन-चुन तिनका चोंचों में दबा कर
बड़े युक्ति से मनोहर घोंसले बनाकर
धूप,आँधी,बारिश से बचा कुटुम्ब बसातीं
ला चुग-चुग दाने नेह से कुनबों को खिलातीं ।

कटते जा रहे बाग़,अभयारण्य सारे
विहगों का दर्द क्या,नहीं इन्सान जाने 
जाने कहाँ गया तनकर खड़ा बूढ़ा तरूवर 
बैठ जिसकी टहनियों पर खग करते कलरव ।

बड़ी ही व्यथित पंछियों की कथा है 
गुलशन का दर्द  कहीं उससे भी बड़ा है 
ये नभचर,दरख़्त हमारे जीवन के अंग हैं
इनके बिन ख़लक़ में रहना सब कुछ बेरंग है ।

ख़लक़-----संसार 

 




शनिवार, 19 मार्च 2022

होली पर एक मधुर गीत

           होली पर एक मधुर गीत 


आया फागुन का महिना फूल खिल गये टहक पलाश के
खेत,खलिहान हुए गुलज़ार  दिन आ गये हर्ष,उल्लास के ,
आया फागुन का महिना-------------। 

अनुपम श्रृंगार किया फागुन ने आई किसलय में तरुनाई 
अमुवा का मंजर मह-मह महके कोयल कूंके ले अंगड़ाई 
लगे बहकने तितली,भौंरे देख कलियों का बाग़ में यौवन 
मंजुल फूलों की पीली चादर सरसों खेतों में बिछा हर्षाई ,
आया फागुन का महिना-------------। 

भीनी-भीनी सुगन्घ से पुलकित हुईं चहुदिशाएँ फागुन में
मन मयूर सा मतवाला विरह की अगन जलाए फागुन में
आओ प्रेम के रंग में रंग प्रीतम अतर्मन भींगाएं फागुन में
मादक गंधों से सांसें अलसाई हमतुम महकाएं फागुन में ,
आया फागुन का महिना-------------। 

बौरा जाते सब फागुन में तोड़ के संयम के सारे प्रतिबंध 
उन्मत्त हो जाता फागुन भी कर वसंत में रंगों से अनुबंध 
मलना गुलाल अंग-अंग कपोल पर रह मर्यादा में सौगंध 
भाईचारे का त्यौहार है होली रखना मधुर सबसे सम्बन्ध ,
आया फागुन का महिना-------------। 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                 शैल सिंह 

गुरुवार, 10 मार्च 2022

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत पर एक भोजपुरी कजरी

  उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत पर एक भोजपुरी कजरी          



           आज की हवा बड़ी सुहानी लग रही है 
           कैसे ना बहूँ सुनामी की इस लहर में 
           ये सुनामी भी बड़ी रूहानी लग रही है 
           ख़ुशियों पर अंकुश लगाना बड़ा मुश्किल 
           ये लहर भी विरोधियों को कहानी लग रही है ।

जैसे कि——-

भगवा रंग में हम रंगाईब चुनरिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना

ले हाथे में कमल क झंडा 
जाईब हम नहाये गंगा
जी भर देखबैं काशी हम नगरिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

सुन बाबा क प्रचंड जीत 
बजाके ढोल गाईब गीत 
जाके बुलडोज़र बाबा के शहरिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

ख़रीद दा एक ठो गाड़ी
रंग केसरिया पहिनी साड़ी
दौड़ाईब वेग में चतुर्भुज डगरिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

अबहीं त बाटे होली दूर
जनता जीत के नशा में चूर
भरि मारे हैं गुलाल पिचकारिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

बहे अईसने बयार जुग-जुग 
चढ़े अईसने ख़ुमार जुग-जुग 
रहे अईसने भगवा क लहरिया पिया 
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

यूपी में कहे का बा नेहवा
देखले आ बाबा क जलवा
जाई चकरा अन्हरो क नज़रिया पिया
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

चतुर्भुज---एक्सप्रेस हाईवे
 
                               शैल सिंह

रविवार, 6 मार्च 2022

काश तुम भी होते वैरागी विछोह में मेरे

काश तुम भी होते वैरागी विछोह में मेरे


पथ हेरें सजल नयन,विचलित सा मन
रेशमी धोती धुमिल कंचुकी भींजा तन ,

प्रणय का उद्भव  हृदय में तुम्हारे लिए
जीवन नि:सार लगे बिन तुम्हारे सजन
साज श्रृंगार, आह्लाद, आनन्द, त्यौहार 
सब निरर्थक  लगे बिन  तुम्हारे  सजन ,

ढल रही ज़िन्दगी,साँझ ढले जिस तरह
लकीरें आनन पे  चिन्ताएं खींचे जा रहीं 
सुकोमल कमनीय काया की हौले-हौले
निरन्तर जर्ज़र सब शाखाएं हुए जा रहीं ,

रमणीयता सुहाती नहीं चाँदनी रात की
दहकता अंगारा चाँद की शीतलता लगे 
कैसे करें व्यक्त उर के उद्गार,रोके हया
निरर्थक उन्मत मिलन की विह्वलता लगे ,

पलकों के मुंडेर पर भी नींद आती नहीं
सपने सूने नयनों में बिचरा करें रात भर
बीती घड़ियों के द्वंदों से उठे उर कसक
सलवटें करवटों  से मुज़रा करें रात भर ,

मेंह दृग हो गए उदधि सा आँचल हुआ
लहरों की भाँति उफनती सकल वेदना
किस घड़ी  रोपे प्रीत  पुष्प निर्मोही तुम
पल्लवित  हो झुलसती  विकल कामना ,

क्यों उर तेरे यही भाव उत्पन्न होते नहीं
ऐ प्रियतम निर्जीव,निष्प्राण जोगन लिए
मुझे तो सम्पूर्ण भुवन है विरहजन्य लगे 
क्यों मेरे सामर्थ्य हारे तेरे सम्मोहन लिए । 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
               शैल सिंह 

                   

शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

भ्रमजाल

            भ्रमजाल 

रातें होतीं रुपहली वे तारों वाली
आसमान चाँद जवानी से भरपूर 
कभी चाहत चढ़ाया परवान मेरा
कुन्दन सा उसका स्पर्शों का नूर ।

लय सांसों की होती जाती मद्धम
जब प्यार-मिलन  का होता संगम 
विहंस बाहुपाश कभी भरते वे जो
दे देता था सहरा भी साथ विहंगम । 

बिन कहे जुबां से अंतर्मन की बातें
आँखें न जाने क्या-क्या कह जातीं 
मेरा शर्माना मधुर मुस्काना उसका 
आहिस्ता ओढ़ती गिरती बल खाती । 

छितरा जाती मुख पर घोर उदासी 
कह अलविदा विलग जब होते हम
होते प्रभात ही चाँद तारों वाला भी 
अलग पुनः ख़्वाब भी बुन लेते हम ।

तब एक झलक बस पा जाने को
हृदय बेचैन,बेक़रार सा रहता था
लो इंतजार अब ख़तम हुआ जब
दूर से देखके उसे दिल कहता था ।

पर इन आँखों को धोखा हुआ या
हो गयी थी हतप्रभ मैं देख नज़ारा 
गलबंहियां डाले संग परी थी कोई
बांहें जो कभी होती थीं हार हमारा ।

दर्द संग ख़ुशी कि हुई सच से रूबरू
सूरत की असलियत शर्मिन्दगी देगी
क्या पता था अजीब सफर मोहब्बत        
कभी ग़म का सिला ये ज़िन्दगी देगी । 
                               
                                                  शैल सिंह 



  

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

" आँखों की करामात पर ग़ज़ल "

आँखों की करामात पर ग़ज़ल



आँखों को मैंने अपनी घटा बना लिया है
उमड़ कहीं न कह दें दिल का राज सारा
इसलिए रख अधरों पे मुस्कान की डली
भींगती रोज भीतर देख अन्दाज़ तुम्हारा ,

निग़ाहों के लफ़्ज़ों से कशमकश में हूँ मैं
फंसी कैसी दुबिधाओं के कफ़स में हूँ मैं
तुम कैसे बाज़ीगर हारा एहतियात सारा
तिलस्मी बड़ा दीद का अल्फ़ाज़ तुम्हारा ,

धड़कनों की सरहद पार आ थे जब गये
निग़ाहों के समंदर उतर नहा थे जब गये
तो कह जाते दिल का भी जज़्बात सारा
बेज़ार करता है नि:शब्द सौगात तुम्हारा ,

ऐसे गुमनाम हुये तुम दे प्रीत की तावीज़ 
क़त्ल किये सुकूं का औ बने भी अज़ीज़ 
निग़ाहों में रख चलते तुम हथियार सारा 
ख़ंजर से तेज किया है मौन वार तुम्हारा ,

नैन किये थे तेरे जो नादाँ दिल से सुलूक 
खिल गये थे गुल प्यार के उद्गार हैं सुबूत 
कर दिया है बयां लिख कर हालात सारा
बेचैन करे तन्हाईयों में ख़यालात तुम्हारा ।

कफ़स--- पिंजरा
सर्वाधिकार सुरक्षित 
              शैल सिंह 


गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

" ढलती ज़िन्दगी पर कविता "

" ढलती ज़िन्दगी पर कविता "


थोड़ी मोहलत मिली थोड़ी फ़ुर्सत मिली
तो मिला तोहफ़े में तन्हाई और अपनों का बिछुड़न
गाड़ी बंगला मिला शोहरत ऐश्वर्य,मिला
तो ढलते वय में मिला पदार्थ सब,टिसता चुभन 
ज़िन्दगी तेरी आवश्यकताओं के वसन्त बीत जाने के बाद ,

सोचती हूँ जी लूँ जी भर कर तुझे
अधूरी ख़्वाहिशें खरीद लूँ झोली भर के
कभी सपने नयन में जो अंगड़ाई लिये थे
सोचती हूँ कर लूँ उपलब्ध उन्हें साकार कर के
मगर तुझसे शिकवा आज यही ज़िंदगी 
कोई आह्लाद नहीं गुजरे कल की अनुभूति सी
मधुर ज़िन्दगी का बेशक़ीमती वसन्त बीत जाने के बाद ,

कुछ मर्यादाओं,प्रथाओं का बंधन 
कुछ विवशताओं की अपनी कहानी
बेमुरव्वत था वक़्त और किस्मत,सम्बन्धी भी
कुछ लाचार परिस्थितियों में बीती जवानी
बहुत शिकवा है ज़िन्दगी तेरे वर्तमान से
उलाहने प्रचुर,बीत गए कल को मेरे आज से
वर्तमान तूं भी मिला हसरतों का वसन्त बीत जाने के बाद ,

उत्तरदायित्वों के निर्वहन में गया आकर्षण देह का 
सुन्दर परिधान,आभूषण अब किस काम के
ना तो यौवन के तरुणाई की चमक औ धमक
ना नैनों में ज्योति ना पैरूख रहे अब किसी धाम के
व्यस्त संतानें ख़ुद के व्यवसाय में,सब बिछड़े स्वजन
अशक्त हुए पाचन,दसन भी सब सुखभोग निष्काम के
सब कुछ मिला ज़िन्दगी तेरे शौकों के वसन्त बीत जाने के बाद। 

दसन--दाँत
 शैल सिंह 


बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...