भ्रमजाल
रातें होतीं रुपहली वे तारों वाली
आसमान चाँद जवानी से भरपूर
कभी चाहत चढ़ाया परवान मेरा
कुन्दन सा उसका स्पर्शों का नूर ।
लय सांसों की होती जाती मद्धम
जब प्यार-मिलन का होता संगम
विहंस बाहुपाश कभी भरते वे जो
दे देता था सहरा भी साथ विहंगम ।
आँखें न जाने क्या-क्या कह जातीं
मेरा शर्माना मधुर मुस्काना उसका
आहिस्ता ओढ़ती गिरती बल खाती ।
छितरा जाती मुख पर घोर उदासी
कह अलविदा विलग जब होते हम
होते प्रभात ही चाँद तारों वाला भी
होते प्रभात ही चाँद तारों वाला भी
अलग पुनः ख़्वाब भी बुन लेते हम ।
तब एक झलक बस पा जाने को
हृदय बेचैन,बेक़रार सा रहता था
लो इंतजार अब ख़तम हुआ जब
दूर से देखके उसे दिल कहता था ।
पर इन आँखों को धोखा हुआ या
हो गयी थी हतप्रभ मैं देख नज़ारा
गलबंहियां डाले संग परी थी कोई
लो इंतजार अब ख़तम हुआ जब
दूर से देखके उसे दिल कहता था ।
पर इन आँखों को धोखा हुआ या
हो गयी थी हतप्रभ मैं देख नज़ारा
गलबंहियां डाले संग परी थी कोई
बांहें जो कभी होती थीं हार हमारा ।
दर्द संग ख़ुशी कि हुई सच से रूबरू
सूरत की असलियत शर्मिन्दगी देगी
दर्द संग ख़ुशी कि हुई सच से रूबरू
सूरत की असलियत शर्मिन्दगी देगी
क्या पता था अजीब सफर मोहब्बत
कभी ग़म का सिला ये ज़िन्दगी देगी ।
कभी ग़म का सिला ये ज़िन्दगी देगी ।
शैल सिंह
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