गुरुवार, 24 मई 2012

गण का अमर दीया

             गण का अमर दीया

कलाएं संस्कृति पूजा ऋचाएं वेद सभ्यता
हिंदवासी की विशेषता अनेकता में एकता
    कोटि-कोटि शत्त नमन शीश में धवल चरण
    माँ भारती का ये चमन गायें जन-गण-मन
हम अनेक अंग हैं अखण्ड इस देश के
स्वेद अर्ध्य के लिए तैयार पुत्र  शेष के
   लहू का एक-एक बूंद मातृभूमि के लिए
   गीत देशभक्ति का गाते रहें इसके लिए। 


महान देवभूमि ये गुमान हमको देश पर
हम  देशवासियों को नाज भाषा,वेश पर
   ध्वज हमारी शान है झुकने न देंगे आन को
    देश की प्रगति लिए कुर्बान देंगे जान को
रणबांकुरों की सरजमीं धुरंधरों की ये धरा
आपदाओं में उतरते हम सतत ही खरा
    बुझ ना सकेगा कभी होशियार आज हम सभी
   जलता रहेगा हर हिया गण का ये अमर दिया।   

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...