रविवार, 6 मार्च 2022

काश तुम भी होते वैरागी विछोह में मेरे

काश तुम भी होते वैरागी विछोह में मेरे


पथ हेरें सजल नयन,विचलित सा मन
रेशमी धोती धुमिल कंचुकी भींजा तन ,

प्रणय का उद्भव  हृदय में तुम्हारे लिए
जीवन नि:सार लगे बिन तुम्हारे सजन
साज श्रृंगार, आह्लाद, आनन्द, त्यौहार 
सब निरर्थक  लगे बिन  तुम्हारे  सजन ,

ढल रही ज़िन्दगी,साँझ ढले जिस तरह
लकीरें आनन पे  चिन्ताएं खींचे जा रहीं 
सुकोमल कमनीय काया की हौले-हौले
निरन्तर जर्ज़र सब शाखाएं हुए जा रहीं ,

रमणीयता सुहाती नहीं चाँदनी रात की
दहकता अंगारा चाँद की शीतलता लगे 
कैसे करें व्यक्त उर के उद्गार,रोके हया
निरर्थक उन्मत मिलन की विह्वलता लगे ,

पलकों के मुंडेर पर भी नींद आती नहीं
सपने सूने नयनों में बिचरा करें रात भर
बीती घड़ियों के द्वंदों से उठे उर कसक
सलवटें करवटों  से मुज़रा करें रात भर ,

मेंह दृग हो गए उदधि सा आँचल हुआ
लहरों की भाँति उफनती सकल वेदना
किस घड़ी  रोपे प्रीत  पुष्प निर्मोही तुम
पल्लवित  हो झुलसती  विकल कामना ,

क्यों उर तेरे यही भाव उत्पन्न होते नहीं
ऐ प्रियतम निर्जीव,निष्प्राण जोगन लिए
मुझे तो सम्पूर्ण भुवन है विरहजन्य लगे 
क्यों मेरे सामर्थ्य हारे तेरे सम्मोहन लिए । 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
               शैल सिंह 

                   

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