गुरुवार, 8 अगस्त 2013

मेरा साक्षात्कार

      संस्मरण                    

 मेरा साक्षात्कार 

    बात उस समय की है जब मैं शोध छात्र  के रूप में पढ़ाई के अंतिम सोपान पर था . मेरे समकालीन सभी छात्र कहीं ना कहीं किसी ना किसी विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर आसीन हो चुके थे ,पर मैं अभी तक व्यवस्थित नहीं हो पाया था ,बहुत पहले एक जगह अप्लाई किया था ,जिसके तहत उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में साक्षात्कार हेतु मुझे इलाहबाद बुलाया गया ,मैं वहाँ इस साक्षात्कार के लिए जाने को बिल्कुल ही तैयार नहीं था ,पर मेरे एक मित्र  ने जो मुझसे लगभग दो वर्ष बाद में शोध छात्र के लिए प्रवेश लिए थे ,उन्होंने मुझ पर बहुत दबाव डाला वो यही पूछते की आखिर क्यों नहीं जाना चाहते . मैं  कहता कि महाविद्यालयों में तो चयन सिफारिशों के आधार पर होता है मैं क्यों जाऊं पैसे और समय की बर्बादी करने ,फिर भी उनके बहुत आग्रह करने पर ,क्यों कि वह मेरे बहुत ही शुभ चिन्तक थे ,वहां गया .वहाँ साक्षात्कार कक्ष के बाहर लगभग सात,आठ कंडीडेट कानपुर से आये थे ,जब मैं चयन बोर्ड के अन्दर अपना साक्षात्कार देने गया तो मन में ऐसा विश्वास था की मेरा तो होना नहीं है इसलिए बहुत ही स्वतंत्र मस्तिष्क से अन्दर गया था लेकिन मेरा साक्षात्कार काफी देर तक चला था ,मैंने हर प्रश्न का यथोचित उत्तर बड़ी ही निर्भीकता से दिया था .साक्षात्कार कक्ष से बाहर निकलने पर कानपुर से आये अन्य उम्मीदवारों ने बताया कि उनके भी विश्व विद्यालय से दो एक्सपर्ट साक्षात्कार लेने हेतु आये हैं ,फिर तो मैं और भी निश्चिन्त होकर लौटा कि मेरा तो चयन नहीं होना है .फिर आकर अपने शोध कार्य में व्यस्त हो गया और इस विषय को बिल्कुल ही भूल गया .करीब एक माह के पश्चात एक रजिस्टर्ड लिफाफा मेरे नाम का छात्रावास में आया जो डाकिये ने मेरे एक मित्र को पकड़ा दिया ,शाम को कमरे पर आने पर वह लिफाफा मुझे हस्तगत हुआ ,खोलने के बाद क्या देखता हूँ कि अरे यह तो मेरा चयन पत्र है और मुझे शीघ्र ही स्नातकोत्तर कृषि महाविद्यालय राठ में योगदान देना है .
    यह पत्र मेरे जीवन का पहला चयन पत्र था जिसकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी इस ख़ुशी ने मुझे सारी रात  सोने नहीं दिया ,वह इसलिए भी कि मुझे नौकरी की सख्त आवश्यकता थी ,कारण मेरा विवाह हो चुका था और मेरी एक बेटी भी थी जो डेढ़ साल की हो चुकी थी ,परेशानियों को वयां नहीं कर सकता . अलग परिवेश से आई हुई पत्नी ने भरसक चार साल की अवधि में परिवार में अपने आप को सामंजस्य बिठाने की भरप़ूर कोशिश की थी , मुझपे उसने अपनी परेशानियों की आँच इन चार सालों में कभी नहीं आने दी थी ,पर मैं ही उसके अभाव और परेशानी को नजरअंदाज नहीं कर पाता था ,मैं  उसकी हर स्थिति से वाकिफ था कष्ट भी होता था ,पर मैं बेरोजगार था ,इसलिए परिवार का अवलम्बन ही एकमात्र सहारा था चाहकर भी पत्नी और बेटी को ज़माने की ख़ुशी नहीं दे सकता था .
    दूसरे दिन यह सोचकर कि अपना शोध कार्य शिघ्राति शीघ्र पूरा करूँ और राठ जाकर अपनी सेवाएं दूँ ,इसी परिप्रेक्ष्य में मैंने राठ महाविद्यालय में अपनी स्वीकृति हेतु पत्र भेज दिया ,तत्पश्चात महाविद्यालय से एक पत्र  प्राप्त हुआ जिसमें मुझे अगले एक माह में सेवा देने हेतु निर्देशित किया गया था ,अतः मैंने एक माह में अपनी पी.एच.डी . थीसिस पूरी करने की योजना बनाई ,और एक माह में थीसिस सबमिट भी कर दी ,अगले पड़ाव के लिए शुक्रवार के दिन विश्व विद्यालय से यह सोचकर निकला कि शनिवार को ज्वाईन कर लूंगा ,इस प्रकार शुक्रवार की रात्रि कानपुर कृषि विश्व विद्यालय के छात्रावास में एक मित्र  के कमरे में रात्रि व्यतीत किया ,मित्र ने अपने किसी अन्य मित्र  को, जो कि राठ महाविद्यालय के अध्यापक थे ,उनके नाम एक पत्र देकर कहा कि कोई बात होगी तो इनसे सम्पर्क करना . अगले दिन शनिवार को राठ के लिए कानपुर से प्रस्थान किया . सफर में भीषण ठण्ड का सामना करना पड़ा ,एक जर्जर स्वेटर के अतिरिक्त मेरे पास और कोई गर्म कपड़ा नहीं था ,मैं कंपकपाती ठंड में बस द्वारा राठ शाम को पंहुँचा . वहाँ पहुँचते पहुँचते शाम के पांच बज गए ,और उस दिन ज्वाईनिंग नहीं हो पाई . महाविद्यालय में एक प्राध्यापक वर्मा जी जो कि परिसर में ही रहते थे ,बोले यहाँ पर इधर उधर सुरक्षित नहीं है ,यदि कोई परिचित हो तो उसके यहाँ ठहर जाईये और सोमवार को ज्वाईन करिये . मैं उस रात उसी मित्र के यहाँ ठहरा जिसके नाम कानपुर वाले मित्र ने पत्र लिखा था ,इस प्रकार मेरी ज्वाईनिंग सोमवार को ही हो पाई .
  ज्वाईन करने पर मेरा वहां बिल्कुल मन नहीं लग रहा था कारण विश्व विद्यालय और छात्रावास जीवन से  निकल कर एकदम भिन्न परिवेश में अपने को समायोजित करने में कठिनाई महसूस हो रही थी। कुछ दिनों के पश्चात् जब दो दिन का वेतन मिला तो अपने लिए एक ऊनी चद्दर ख़रीदा ,जिसकी ठिठुरती हुयी ठण्ड में मुझे सख्त आवश्यकता थी इससे अधिक पैसा नहीं था कि कुछ और खरीद सकूँ,पास कुछ भी नहीं था,वेतन एक चद्दर में ही तमाम हो गया। एक महिना किसी तरह व्यतीत करने के बाद मन इतना ज्यादा उचटा कि एक दिन बिना किसी को कुछ बताये एक मित्र जो राजेन्द्र कृषि विश्व विद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कुछ माह पूर्व ही ज्वाईन किये थे ,उनके यहाँ पूसा विहार चला गया। वहां जाने पर उसी दिन एक आश्चर्य जनक इत्तफाक हुआ ,और वह इत्तफाक था उसी विश्व विद्यालय में सहायक प्राध्यापक पद पर मेरे लिए नियुक्ति पत्र का लिफाफा। यह अचंभित करने वाला वाकया था ,क्योंकि इसका साक्षात्कार लगभग आठ माह पूर्व मैंने दिया था जिसकी उम्मीद सिरे से छोड़ चुका था। यह जादुई चमत्कार मेरी अपार प्रसन्नता का द्योतक था ,मेरे अभिलाषाओं की महान पूर्ति थी ,क्योंकि राठ में मेरा बिल्कुल भी मन नहीं रम रहा था ,इस प्रकार मैं बिना कुछ सोचे समझे वहां पर ज्वाईन कर लिया ,मेरी नियुक्ति विश्व विद्यालय के मूख्य परिसर में ही हुई थी मित्र मंडली कि अपेक्षा मेरा चयन देर से हुआ था पर दुरुस्त हुआ था ,कारण मुझसे पहले जिन मित्रों का चयन हुआ था वह सुदूर अंचलों में कठिनाई भरे वातावरण में हुआ था।
   ज्वाईन करने के दो चार दिन बाद मैं पूनः राठ गया अपना सामान वगैरह लाने के लिए ,सामानों की फेहरिस्त कुछ ज्यादा तो नहीं थी ,हाँ दूसरे महीने की सेलरी से पत्नी और बेटी को घर से लाने के लिए गृहस्थी का जो थोड़ा बहुत जरुरी सामान ख़रीदा था वही था ,क्योंकि अब इससे अधिक उन दोनों को तकलीफ में नहीं देखना चाहता था और राठ से यह सोचकर ही निकला विहार के लिए कि मित्र से मुलाकात कर सीधा घर चला जाऊंगा। वहां पहुँच कर मैंने अपने प्राचार्य को अपनी नयी ज्वाईनिंग के विषय में बताया ,प्राचार्य महोदय बहुत ही अच्छे इन्सान थे , मेरी इस अपरिपक्व हरकत पर उन्होंने मुझे नौकरी की बारीकियों के विषय में बताया और समझाया ,और मुझसे बोले बिना एक जगह विमुक्त हुए दूसरी जगह ज्वाईन नहीं करते हैं ,ऐसा करना अपराध है ,कहा ठीक है इस समय तो आपने ऐसा कर लिया पर जीवन में ऐसी नासमझ हरकत नहीं दुहराईयेगा ,उन्होंने मुझसे एक महीने पहले की तारीख में एक त्याग पत्र  लिखवाया और उसे प्रबन्ध समिति से स्वीकृत भी करवाया। इस तरह उन्होंने किसी भी तरह का मेरा फाईनेंशियल नुकसान नहीं होने दिया ,जबकि वह चाहते तो एक महीने का वेतन रुकवा सकते थे ,मेरी दोनों जगह की नौकरी खतरे में डाल सकते थे। खैर मैं वहाँ से अपना सामान लेकर वापस आया और ईश्वर को धन्यवाद दिया जिन्होंने ऐसे महान व्यक्तित्व वाले इन्सान के सानिध्य में रहने का अवसर प्रदान किया था ,अन्यथा मैं भारी विपत्ति का शिकार हो सकता था।
     राठ में प्रवास के दौरान ही एक रोचक घटना सुनने को मिली ,वहां पर एक इन्टर मीडिएट कालेज है जिसमें एक सिंह साहब जो कि वहां पर अध्यापक थे ,अपनी बहन की शादी समारोह में मुझे आमंत्रित किये थे ,मैं उसमें सम्मिलित भी हुआ था । अपरिचित होते हुए भी बाद में सिंह साहब मेरे काफी शुभ चिन्तक हो गए थे ,उन्होंने ही वह रोचक दास्ताँ सुनाई थी , बोले अरे आप जानते हैं ,आपके ज्वाईनिंग के समय हम लोग आपका अपहरण करने वाले थे ,अच्छा हुआ जो आप नहीं मिले ,अन्यथा आपका अपहरण कर आपको एक महीने के बाद छोड़ा जाता ,ताकि एक महीने की ज्वाईनिंग की अवधि ख़त्म हो जाये और आप ज्वाईन ना कर पाएं ,और उन्होंने पूरी कहानी बताई कि राठ के एक प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार के एक व्यक्ति जो कि इसी पद के दावेदार थे ,पर चयन ना हो पाने के कारण आपके अपहरण का ताना-बाना बुना गया ,एक बात और ,उसी क्रम में मेरे बारे में यह अफवाह भी फैलाई गयी कि मैं पिछड़ा वर्ग से आता हूँ चूँकि महाविद्यालय का प्रबन्ध भी पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा ही संचालित होता है ,और इसी कारण महा विद्यालय के प्रबन्ध समिति ने मेरा चयन करवाया है।        मुझे उस वर्मा जी की बात याद हो आई जिन्होंने मुझे परिसर में मिलने के बाद शायद इन्हीं सब बातों के लिए आगाह किया था कि किसी से मिलिएगा नहीं और ना ही किसी के यहाँ जाईयेगा ,सीधे परसों यानि सोमवार को ज्वाईन करियेगा। मुझे ईश्वर हर कठिनाईयों से उबार लेते हैं। उस वैवाहिक समारोह से जब मैं वापस आया तो इस षड्यंत्र के विषय में सोच सोचकर सिहर उठता कि अनजाने में ना जाने मेरा क्या हश्र हो जाता। वह जगह भी तो काफी खतरनाक है ,यद्यपि राठ छोड़ते वक्त वही लोग हमारे परम शुभ चिन्तक हो गए थे। अपने जीवन की घटनाओं की दास्तान तो बहुत लम्बी है जिसको लिखने में कागज भी शायद कम पड़ जाये ,मुझे हर चीज मिली पर लम्बे संघर्ष के बाद और वह संघर्ष इतना असहनीय कि लगता अब अवसर हाथ से निकल गया ,लेकिन ईश्वर पर अपने भरोसे को कायम रखना नहीं छोड़ता ,मेरे धैर्य की परीक्षाओं के साथ-साथ भगवान ने मुझे एक अच्छी सौगात भी दी हैं अनमोल सुख की नींद। इस अमूल्य निधि के आगोश में जाकर क्षण भर में ही ऐसा निर्लिप्त हो सो जाता हूँ कि इससे पहले की सारी म्लानता भूल जाता हूँ। मैं प्रायः सुनता हूँ कि लोगों को कठिनाईयों में भरपूर नींद नहीं आती ,पर मेरे साथ इससे इतर कुछ और ही है मुझे प्रसन्नता में नींद नहीं आती। जीवन में दो वाकये ऐसे हुए जिसमें मुझे सारी-सारी रात नींद नहीं आई , और वे दोनों क्षण थे एक हाई स्कूल में पहले वर्ष की असफलता के बाद दूसरे वर्ष में अप्रत्याशित रूप से विद्यालय में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होने पर तथा दूसरी जीवन की पहली नौकरी की नियुक्ति पत्र मिलने पर। ये दोनों ही खुशियाँ मेरे नैराश्य जीवन को गति और उर्जा प्रदान की हैं ,उत्साह और उमंग से तरोताजा की हैं ,परिश्रम करने की प्रेरणा दी हैं।
    जिनकी खुशियों के लिए मैं व्यग्र और चिंतित रहता था ,पुनः नयी नियुक्ति के कारण  बिलम्ब हुआ और उनकी कठिनाईयों में फिर से छः महिने की कठिनाईयाँ जुड़ गयीं। छः माह बितते-बिताते मकान मिलने पर घर से परिवार [पत्नी और बेटी ]लाया। उन चार सालों के अभाव को पाटने के लिए मैंने हर संभव प्रयास किया ,सुरुचि पूर्ण जीवन शैली को संवारने में पत्नी की सहभागिता ने भी मुख्य भूमिका निभाई । मेरा विहार प्रवास बहुत ही सूखमय और यादगार रहा है , वहां के परिवेश में स्वयं को काफी स्फूर्तिवान महसूस किया। आज भी कभी-कभी अपहरण वाली कहानी स्मरण हो आती है ,सोचता हूँ यदि कोई अनहोनी हो जाती तो मेरी उन जिम्मेदारियों का क्या होता जिनके जीवन में मेरे सिवा कोई मजबूत स्तम्भ या आसरा नहीं था। जिंदगी का इतना लम्बा अरसा गुजर जाने के बाद भी नियुक्ति का अनोखा उपहार, पहली नौकरी की सौगात ,ईश्वर की दी हुई विषम परिस्थितियों में बख्शीश नहीं भूलता। पत्नी,बेटी की पढ़ाई के दौरान ही जिम्मेदारियों के अहसास ने काफी बेचैन किया। अपनी अस्मर्थ सामर्थ्य के कारण ही परिवार वालों के आदेश और आग्रह की अवहेलना नहीं कर पाया था और विवाह की सहमति देनी पड़ी थी इसीलिए ऐसी परिस्थितियों का कारण बना ,हृदय के करीब रहने वाले चेहरे पर छाई हुई मलिनता का दंश सहन नहीं हो पाता था।
      यह कहानी किसी के लिए भी शिक्षा प्रद हो सकती है ,जब तक पैरों पर खड़े न हो जाओ किसी तरह के दबाव में ना आओ , वैवाहिक बंधन को दर्द ,तिरस्कार ,हीनभावना और उपेक्षाओं का शिकार ना होने दो। परिवार चाहे जितना सम्पन्न हो निजी सपनों को कोई संवार नहीं सकता।
   
                                                                                                      शैल सिंह
       

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...