रविवार, 10 जनवरी 2016

'' एक छोटे से बालक की क्रन्तिकारी आवाज ''

 एक छोटे से बालक की क्रन्तिकारी आवाज 


माँ मुझको वर्दी पहना दो देश की रक्षा करने जाऊँगा
माँ सचमुच की बन्दूक दिला दो दुश्मन मार गिराऊँगा ,

आँखों में खून उत्तर आया है माँ देख जवानों की लाशें
मत अबोध की बात कहो माँ सर बाँधो केसरिया साफे ,

फ़ेंक दिया माँ सारा खिलौना छोड़ा कंचा गिल्ली-डण्डा
धधका रही प्रतिशोधी अंतर्ज्वाला बदल दिया है फण्डा ,

शान्ति अमन के पोषक घर घुस,दुश्मन ललकार गया है
घर के घाती जयचन्दों टुच्चों का सुर दुश्मन ताड़ गया है ,

पहले निपट लूँ उन भडुवों  से फिर छलियों से निपटूंगा
गिन-गिन हिसाब कपट का लूँगा फिर इनको भी सुतुंगा ,

माँ भैया की शहादत पर आँखों में मत आँसू भर लाना
माँ वीरगति पर पापा के तुम गौरव चक्र लिए मुस्काना ,

मत राखी तोड़ गिरा बहना देखो दूजा भाई तैयार खड़ा
उठो सजाओ चन्दन,थाली,रोली रिश्तों से है वतन बड़ा,

माँ तूने तो गीता का सार बता नैतिकता का पाठ पढ़ाया
दुश्मन की माँ होतीं गन्दी क्यूँ इतनी जेहादी पौध उगाया ,

आतंक का कोई धर्म ना होता माँ कहते हैं इनके आका
और सहिष्णु बन साफ़गोई से  तेरे घर डलवाते हैं डाका ,

छल से कितने नैनों के तारे टूटे अब सब्र नहीं होता रे माँ
बुजुर्ग़ पिता का देख मुख मलीन फ़फ़ोला फूट रहा रे माँ

माँ हमने भी तो ठान लिया अब ऐसा भद्र मजा चखाऊँगा
दफ़नाने की वजाय काहिलों की चिता पर आग लगाऊंगा ,

जो कामी नृशंस निज जननी की बेरहमीं से क़त्ल करता  है 
पीर,मोहम्मद,पैग़ंबर,ज़न्नत की झूठी कलुषित आहें भरता है  ,

ऐसे राक्षसों का करना संहार माँ गदा अभी भीम की ला दो
बजरंगबली हनुमान बनाके लंका दहन का तिलक लगा दो ,

करें मुकाबला आमने-सामने छप्पन गज छाती का कायर
चटनी,भुर्ता बना कचूमर रख दूँगा दे दाग दना-दन फ़ायर ,

मैं अपनी आज़ाद जमीं पर मस्जिद तोड़ूँ या मंदिर बनवाऊँ
क्यूँ कुत्तों को होता गुरेज़ जब गधों के मसले ना टाँग अड़ाऊँ ,

हठ महाप्रताप राणा बनना असली चेतक,तलवार दिला दो
कर वीर शिवा की तरह सजा पण,रण की पोशाक पेन्हा दो ,

दुश्मन की बांबी-बांबी घुसकर ऐसी भीषण आग लगाऊँगा
रूह भी थर्रा जाएगी चीलों को बोटी-बोटी काट खिलाऊँगा ,

माँ बाँध केसरिया सेहरा जीत का धरती का पाँव पखारूँगा
बेग़ैरत राखों पर तुझे थूका उन जांबांजों का क़र्ज़ उतारूँगा ,

ताबूतों घूसा बैरी सूअरों का जनाज़ा,नहीं दफ़न करने दूँगा
वरना पैदा होगा फिर जिन्न बन,ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगा ,

ओ गंगे जमुनी माँ,विश्व गुरु का तमगा गले तेरे लटकाना है
ये चंचल मुण्डा छोड़ा शरारत ताज वतन के माथ मढ़ाना है ,

माँ मुझे तिरंगा अपना प्यारा स्वर्ग सी धरती अपनी प्यारी है
ग़र तेरी  शान-आन पर जां कुर्बा हो धन-धन भाग हमारी है ।

पण --तलवार ,कर --हाथ ,
                                                             

                                                       







बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...