सोमवार, 21 दिसंबर 2015

माँ लौट आऊँगा जब भी दोगी सन्देश

माँ लौट आऊँगा जब भी दोगी सन्देश


संग ले गया वह घर की रौनक़ें सारी
बुढ़ापा संग सांय-सांय करे फूलवारी,

सावन भादों सी झर-झर बरसें आँखें
जबकि बरसात का मौसम बीत गया
सरहद पार बसे किसी और मुल्क़ जा
उन औलादों के विषय में क्या कहना ,

किस मोहपाश में बांध रखी फिरंगन
कि भूला गाँव,गली शहर अपना देश
आँखों में सपने भर जो कह गया था  
माँ आ जाऊंगा जब भी दोगी सन्देश ,

बूढ़ी हो गईं आँखें अब तो इंतजार कर
शिथिल पड़े उमड़ता ममता का सागर
जाने कब बाती गुल हो जाये दोनों की
हृदय के ख़्वाब सुनहरे रह जाएँ क़ातर 

पहले यदा कदा पाती भी आ जाती थी
अब तो वह कड़ी भी धीरे-धीरे टूट गई
जाने कब आएंगे परदेश को जाने वाले
सांसों की डोर शनैः-शनैः अब छूट रही

अपनी मंज़िल छोड़ मंज़िल तलाशने
निकला था घर से अपनों से दूर बहुत
माँ-बापू का कांधा भूल खो गया कहाँ
कभी न मुड़कर देखा हृदय शूल बहुत ,

जमीन,ज़ायदाद,मकान जिनके लिए,
किये,यत्न से तृण-तृण पाई-पाई जोड़
उस घर का देखो उजड़ा वीराना मंज़र
जहाँ सुनाई दे उल्लू,चमगादड़ के शोर ,

                                    

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...