" विश्वव्यापी व्याधि पर कविता "
ऐसी विभीषिका से वबाल मचाई हो कॅरोना
कैसी विश्वव्यापी व्याधि तूँ दुसाध्य सांस लेना ।
किन गुनाहों की मिल रही सज़ा ज़िन्दगी को
कि अब ज़िन्दगी ही दे रही दग़ा ज़िन्दगी को
हवाएं भी खफ़ा हो ज़ुल्म ढा रहीं हैं सांसों पर
एवं ख़तरनाक हो क़हर ढा रहीं हैं आँखों पर ।
जाने कब तक चलेगा मौत का ये सिलसिला
तुम्हारी बेग़ैरत करतूत से ज़िन्दगी को गिला
दुनिया सहम गई है देख जनाज़ों का कारवां
शंकित शवों की संख्या से मरघट भी पशेमाँ ।
हो वैरी का जैविक वार या प्रकृति हुई ख़फ़ा
कि महाप्रलय पे तुले धर्मराज कर रहे ज़फ़ा
विस्मित हूँ सांसों के ,अकस्मात् थम जाने से
सृष्टि बेबस निरूपाय उचित उपचार पाने से ।
जो किया कल के लिये संचय न काम आया
कांपें स्वजन भी छूने से ऐसी अस्वस्थ काया
कांधे भी मुनासिब नहीं बेसहारा सी मृत देह
थरथराती देख रूह औषधालयों पे भी संदेह ।
लिपट कर भी ना रो पाएं ऐसे छटपटाते प्राण
बेअसर उपाय सारे जो भी सभी ने किये त्राण
चाँदी हो गई हरामख़ोरों की इस महामारी में
ज़िन्दगी,धन से गये मज़लूम दुर्बल लाचारी में ।
पशेमाँ--शर्मसार,लज्जित
त्राण--रक्षा,बचाव
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिव्या जी,पाँच लिंकों का आनन्द पर मेरी रचना को जगह देने के लिए
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (18-05-2021 ) को 'कुदरत का कानून अटल है' (चर्चा अंक 4069) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका बहुत-बहुत आभार रविन्द्र जी
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंरो ना पायें लिपटके भी ऐसे छटपटाये प्राण
जवाब देंहटाएंबेअसर उपाय सारे जो भी सबने किये त्राण---गहन रचना।
इतनी गहराराई तक पढ़ने के लिये आपको धन्यवाद
हटाएंबहुत अच्छा लगा प्रतिक्रिया देखकर
कोरोना की भयवाह स्थिति का चित्रण
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग को भी पढ़े
धन्यवाद प्रीती जी आपके ब्लाॅग का लिंक क्या है
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया
हटाएंमार्मिक एवं हृदयस्पर्शी रचना ...
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार आदरणीया
हटाएंवाह!सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी
हटाएंदिल को छूती रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
हटाएंवाह शैल जी, जमकर लताड़ा-----
जवाब देंहटाएंचाँदी हो गई हरामखोरों की इस महामारी में
ज़िंदगी,धन से गये मज़लूम दुर्बल लाचारी में ।----वाह
धन्यवाद अलकनंदा जी ,पता नहीं क्यों मुझे लोगों के ब्लाॅग नहीं दिखते कुछ चेंज हुआ है क्या
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