सोमवार, 21 जुलाई 2014

कितने मौका परस्त तुम

कितने मौका परस्त तुम


कदम-कदम पे भरोसे को आघात मिला 
वफ़ा को मेरी बेवफ़ाई का सौग़ात मिला ,

मेरी शाइस्तगी का बेजां इस्तेमाल हुआ  
ख़ाकसार होना क्या गुनाह बदहाल हुआ ,

शिद्दत से ऐतबार करना ही ज़ुर्म था मेरा
पुरदर्द,पुरसोज से सम्मान ग़र्क़ हुआ मेरा ,

ऐसी बशारत दे बिस्मिल किया क्यों दोस्त 
वाक़िफ़ बरगस्तगी से बुरहान मत दे दोस्त ,

इस बदअहदी का ख़ुदा ही जवाब दे अच्छा 
तेरी बदनीयत पर रग़म रहना मेरा अच्छा ,

अर्से की भली दोस्ती का मख़ौल खुद उड़ाया
बाज़ीच मेरा दिल क्या तोड़ जश्न जो मनाया ,

क्या कहेगी दुनिया ऐ खुदगर्ज़ ये भी ना जाना 
हम भी होंगे ख़ुश इक़बाल आकर देख जाना ,

ख़यानत तुझे मुबारक़ मेरी सादगी ही देखी 
कितने मौका परस्त तुम ये वानगी भी देखी । 

शाइस्तगी--शिष्टता,सभ्यता                
ख़ाकसार--विनीत,विनम्र               बुरहान--युक्ति ,सफाई 
पुरदर्द--दर्द से भरा हुआ                  बदअहदी--वादा खिलाफी 
पुरसोज--जलन और तपन             रग़म--घृणा ,नफ़रत 
बिस्मिल--आहत                            बाज़ीच--खिलौना 
बशारत--प्रसन्नता                         ख़यानत--विश्वासघात 
बरगस्तगी--विमुखता                     ख़ुश इक़बाल--सौभाग्यशाली 

                                              शैल सिंह 



बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...