शनिवार, 31 मार्च 2018

" कमर कस लो कोई बाकी कसर ना रहे "

आँधियों का चट्टानों  पर असर नहीं होता
हवाओं का जड़-तनों पर सफ़र नहीं होता
चाहे जितनी चाल चल लें ये बागी दिशाएं
हर एक टहनियां कहर  से हिला लें बलाएं
सुगंध फैली ख़िज़ाँ में भी है जिस फूल की
उस महक पर बलाओं का बसर नहीं होता ।

तपाकर अग्नि में निखारे हुए स्वर्ण जैसा
गिन्नी,गिलट में असली चमक नहीं होता
जौहरी होते ग़र सभी हीरे की परख लिए
तो लहरों पर तूफ़ानों का डगर नहीं होता
कमर कस लेना कोई बाकी कसर ना रहे
भटके मुसाफ़िर का कोई शहर नहीं होता ।

ठोकरों ने जब स्वर्णिम अवसर है दिया
तो बांट रहे हो ज़हन को क्यों हिस्सों में
चमन सर्वोपरि बन्धु हमारे, तुम्हारे लिए
सोचो कि हरदम सुन्दर पहर नहीं होता
चलो,गूनें,मथें लें संकल्प सदा के लिए
गद्दारों से घातक कोई जहर नहीं होता ।

                                 शैल सिंह

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