बुधवार, 9 जुलाई 2014

धरा को मौसम की सौगात तो दो

धरा को मौसम की सौगात तो दो 

टकटकी लगाये देखें आँखें 
बस अम्बर की ओर
कड़क तड़क कर ललचाये
काली घटा घेरी घनघोर ,

ख़फा-ख़फा क्यों बरखा रानी
कर दो ना थोड़ी मेहरबानी                        
लेकर उधार कजरारे बादल से
नियत समय बरसा दो पानी ,

कृषक बेहाल हैं सुखी धरती
खेत कियारी पड़े हैं परती
दिखे ना कहीं हरी दूब औ चारा
भेड़ बकरियां गायें क्या चरतीं ,

घर में नहीं अन्न का एक भी दाना
ठाला पड़ा है कोठार का कोना
रहम करो ओ बादल राजा
लगा लो गुदड़ी का अन्दाजा ,

घर जला नहीं है कबसे चूल्हा
फटका नहीं है राशन कबसे कूला
सुखा कंठ हैं क्षुधा है भूखी
काट रहे दिन खाकर रूखी-सूखी ,

सूरज बहुत हो गई तेरी वाली
तपन से झुलसी देह की बाली
कृपा कर सूनो मानवता का शोर
कब होगी धुँधलाई आँखों में भोर ,

क्यों कंजूस बने हो मेघराज जी
धरा को मौसम की सौगात तो दो
बोवनी का समय खिसक ना जाए
गायें सभी मल्हार बरसात तो दो ,

आमंत्रण स्वीकार करो आह्लाद से
छोड़ बेरुखी मेंघ धमक दिखाओ ना
टर्राते मेंढक,चर-अचर के मन की भी
बारिश की बूँदों से प्यास बुझाओ ना ।

कियारी--क्यारी ,परती--बिना बुवाई जुताई
कोठार--अनाज रखने का हौज
फटका--पछोरना ,कूला--सूप

                                    शैल सिंह 

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...