ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
शुक्रवार, 28 जुलाई 2017
मैं नेह की शीतल समीर हूँ
मंगलवार, 25 जुलाई 2017
घूँघट जरा उलटने दो
जितने भाव उमड़ते उर में
जहाँ अधर नहीं खुल पाते
झट सहगामी बन जाते हैं
खुद में ढाल जज़्बातों को
मन का सब कह जाते हैं |
'' घूँघट जरा उलटने दो ''
आयेंगे मेरे प्रियतम आज आँखों में अंजन भरने दो
संग प्रतिक्षित मेरे संगी-साथी आज मुझे संवरने दो ,
घर की ड्योढ़ी साजन को पल भर जरा ठहरने दो
जी भर किया सिंगार उन्हें जी भर जरा निरखने दो
देखें चांदनी का शरमाना वो घूँघट जरा उलटने दो
अपलक देखें इक दूजे को थोड़ा आज बहकने दो
देखूं चन्दा की भाव-भंगिमा थोड़ा आज परखने दो।
'' कोई याद आ रहा है ''
रुमानियत भरा ये मौसम शायरी सुना रहा है
गा रहीं ग़ज़ल फ़िज़ाएं अम्बर गुनगुना रहा है ,
मुँह छिपाये घटा में बादल खिलखिला रहा है
मन्जर सुहाना सावन का बांसुरी बजा रहा है
अलमस्त अलौकिक छटा माज़ी जगा रहा है ,
बीते मधुर पलों को समां चित्रित करा रहा है
आँगन उतर चाँद आहिस्ता,दिल जला रहा है
एक क़तरा तो देखें
तो जानोगे होती मजा क्या है बरसात की ,
एक क़तरा तो देखें क्या इसमें बरसात सी ,
प्रलय मचा देता जब फटता है बरसात सी ,
फिर ना कहना कैसी बला की बरसात थी।
कैसे खड़ा ख़िज़ाँ में शज़र
जा पता पूछ कर आ बता कुछ इधर
क्यों बदल सी गई हमसफ़र की नज़र |
ऐ बहारों कभी जाओ मेरे दर से गुजर
हो गए बेखबर क्यूँ आजकल इस क़दर ।
सम्पूर्ण जगत में बस एक ही भगवान हैं
सम्पूर्ण जगत में बस एक ही भगवान हैं
नाम के चलते ही हृदय बहुत हैं विष भी भरे गए,
अरे प्रकट हो त्रिशूलधारी भटकों को समझाओ
रविवार, 23 जुलाई 2017
कई दिनों की बारिश से आजिज होने पर
कई दिनों की बारिश से आजिज़ होने पर,
बहुत हो गया जल बरसानी
भर गया कोना-कोना पानी ,
नाला उफन घर घुसने को आतुर,
जल भरे खेत लगें भयातुर,
रोमांचित बस मोर,पपिहा,दादुर ,
कितने दिन हो गए घर से निकले
पथ जम गई काई पग हैं फिसले
बन्द करो प्रलाप क्या दूं इसके बदले ,
कितने दिन हो गए सूरज दर्शन
तरसे धूप लिए मन मधुवन
कपड़े ओदे,चहुँओर सीलन
रस्ता दलदल किचकिच कर दी
मक्खी,मच्छर से घर भर दी
गुमसाईन सी दुर्गंध हद कर दी ,
घूम रहे जीव खुलेआम भयानक
जाने कब क्या हो जाए अचानक ,
जा कहीं और बरस कई जगहें सृष्टि की
क़ाबिलियत दिखा अपने क्रूर कृति की ।
शैल सिंह
बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए । ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा तुझे दिल में नज़र ...
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आजा घर परदेशी करती निहोरा सावन की कारी बदरिया पिया तेरी यादों का विष पी नागिन हुई । नाचें मयूरी मोर पर फहरा-फहरा पिउ-पिउ बोले वन पापी...