बुधवार, 21 जनवरी 2015

कश्मीर के हालात पर

कश्मीर के हालात पर 



 नयी सोच के फ़ौवारों में प्रतिशोध की अगन बुझा लें
आआो शांति का पर्व मनाकर उन्मत्त आक्रोश भगा दें ,,

सहना आसान कहर मौसम का पर इंसा पर इंसा की त्रासें
उन्मुक्त गगन में कैसे विचरें अंगारों पे करवट लेतीं रातें ,,

आह भरे साँसों के धड़कन की कब सुख से सोकर जागेगी रैना
असहाय सवाल सब पूछें कब होगी रक्तरंजित वस्ती में पुरनिमा ,,

कटुता के कंटक शूल खींचकर दिल की कुटिया में दीप जला दें
जन मानस की वीरां क्यारी में हम समता के सुन्दर फूल खिला दें ,,

धू-धू कर जल रहा वर्तमान हमारा हुँह ; लोग कहते इतिहास पढ़ो
इतिहास तो बीता कल था प्यारे चलो भावी कल पे नूतन जिल्द मढ़ो ,,

कोई ज़हन ना सहमा रह जाये आओ भरम की सब दीवार ढहा दें
सम्बन्धों के ठूंठ होने से पहले सौहार्दमयी जहाँ में बौर खिला दें ,,

अलसायों को आज़ जगाने आई निद्रा कोसों दूर भगाने आई
निखिल सृष्टि का करूँ सिंगार जग से इतना करूँ मैं प्यार ,,

हर घर आँगन दीवार खड़ी है दरार पड़ी हर दिल में है
मैल मलाल की किसमें धोऊं जब प्रदूषण गंगाजल में है ,,

प्रत्यंचा चढ़ी निशाने पर है राजवरदाई हैं आज़ कहाँ
आज़ अर्जुन संकट धर्म खड़े हैं  गीता के भगवान कहाँ ,,

सबका सुख अपना लगता है दुःख की गागर कहाँ डुबोऊँ
कर्म जगत से बिरत सभी हैं क्या छोड़ूँ औ क्या कुछ बोऊँ ,,

सीताएं झुलसें अग्नि परीक्षा में द्रुपद सुताओं का केश खुला
पिस रही कुचक्र की चकिया में किस-किस से मैं करूँ गिला ,,

आज़ जरुरत आन पड़ी है घन संकट के घिर-घिर गहराये
वीर प्रसूता जननी फिर दे दे जुझारू रण में अपनी ललनाएँ ,,

आज़ भी विषम परिस्थितियों में हर नारी पन्ना धाय बन जाएगी
राष्ट्र को पड़ी जरुरत यदि तो हर नर की हड्डी वज्र बन जाएगी ,,

गर्व हमें,स्वतंत्रता हैं जनक हमारा भारत भूमि जान से प्यारी माता
घर्म संस्कृति पावन बहन हमारी ऊँचा मस्तक ग़ौरव अपना भ्राता ,,

कण-कण में श्री भगवान कृष्ण हैं चप्पे-चप्पे में श्री राम भगवान
शिरोमणी यह प्यारा देश हमारा मोर मुकुट हैं इसके चारों धाम ।

                                                                                 शैल सिंह







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