बुधवार, 20 जनवरी 2016

अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो



अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो

झुग्गी झोपड़ियों में आग लगने पर 


एक छोटी सी लुत्ती हुई शोख़ इतनी
हवा के शहर का पता पूछकर
पस गई ठाठ से झुग्गियों के नगर
खाक़ कर डाली सब वस्तियां गेलकर

अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो
ख़त्म कर सब कहानी पवन खेलकर
मातम पर चल दिया हँसता हुआ 
क्रूर विध्वंस कर नाद से बेखबर

खुद के षड्यन्त्र में लुत्ती स्वाहा हुई
मिली संयोग की संज्ञा विनाश झेलकर
कोई भी अरमां की लाशों का ढेर देखकर
कुछ ना पूछा भभकों का छाला कुरेदकर ।

पस --घुसना  ,गेलकर --मज़ाक़ कर 

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...