गुरुवार, 14 सितंबर 2017

मंच पर कविता आरम्भ करने से पहले,समां बांधने के लिए

मंच पर कविता आरम्भ करने से पहले,समां बांधने के लिए


मेरी आँखों का पीके मय
सभी मदहोश बैठे हैं
नशा नस-नस तरल कर दी
सभी ख़ामोश बैठे हैं,

पलकें हो गईं शोहदा
झपकना भूल बैठी हैं
जब से आई हूँ महफ़िल में
सभी खो होश बैठे हैं,

ग़र हो तालियों की गूँज
तो भंग तन्द्रा सभी की हो
महफ़िल हो उठे जीवन्त
करतल ध्वनि सभी की हो,

बंधन खोल हथेली का
सुर साजों से नवाज़ें ग़र
हो अन्दाजे-बयां माहौल
वाह-वाह धुन सुना दें ग़र,

शब्दों से करूं सराबोर
महफ़िल हो जाए गदगद 
गर दें हौसला रंच भी
मन के तार छेड़ूं अनहद,

गणमान्य अतिथियों का
करूं भरपूर मनोरंजन
दर्शक दीर्घा में बैठे सज्जनों
करुं शत-शत नमन वन्दन ‌।
                     शैल सिंह

हिंदी पर कविता , हिंदी का हो राज्याभिषेक

हिंदी का हो राज्याभिषेक 


हिंदी की ख़्याति बढ़ाने को
इसे हमें सशक्त,समृद्ध करना है
सहर्ष अपना कर इसे प्रतिष्ठित कर
विश्वपटल पर भी प्रसिद्द करना है ,

हिंदी हमारे भारत का गौरव
हिंदी सुशासन,सुराज की धार है
भाल सजा बिंदिया हिंदी
करती हिंदुस्तान का श्रृंगार है ,

गंगाजल सी पावन हिंदी
उर्दू,संस्कृत से भी मिलनसार है ,
कितनी सीधी,सहज,सरल,मधुर
हिंदी हृदय का उद्गार है

रिश्तों की डोरी,ऊष्मा प्राणों की
हिंदी मौसमी गीतों की फुहार है
हिंदी का विस्तार करें हम
ये ऋषि,मुनियों के वाणी की टंकार है ,

मन से मन के तार जोड़ती 
हिंदी मधुर,मनोहर रसधार है
कण-कण में है घुली हुई
हिंदी कल-कल बहती जलधार है ,

देश,दुनिया में भी गूंज रही
आज़ हिंदी की ललकार है
बांधती सुर में गीत,ग़ज़ल को
हिंदी मीठी कर्णप्रिय झंकार है ,

भावों में करुणा,पीर पिरोने वाली 
हिंदी एकमात्र आधार है
सब भाषाओँ पर भारी पड़ती
हिंदी जब भरती हुंकार है ,

स्वतः उतरती मन के आँगन
कवि मन के कृतियों का संसार है
हिंदी का हो राज्याभिषेक
हम हिन्दुस्तानियों की पुकार है ,

भावों की प्रेयसी,प्रखर वक़्ता भी 
हिंदी तेरा जय-जयकार है 
परचम हिंदी का लहर रहा
बह रही दिशा-दिशा बयार है ,

हिंदी मणि है हिंदुस्तान की 
परिष्कृत सम्प्रेषणीय उदार है
जन मानस को करती जागरूक
हिंदी हृदय से तेरा सत्कार है।

                     शैल सिंह 




मंगलवार, 12 सितंबर 2017

'' देश लिए शहीद हुए एक सैनिक की भावना ''

देश लिए शहीद हुए एक सैनिक की भावना 


तेरी आन लिए प्रान किया क़ुरबान प्यारे देश मेरे
मेरे प्रति तेरा भी तो देश कुछ फ़र्ज होना चाहिए ,

किस हाल में महतारी,हाल क्या है प्राण प्यारी की
किस हाल में दुलारा,हाल क्या लाड़ली दुलारी की 
जो सहारा बूढ़े पिता ने देश तेरी आन लिए वारा है
उस घर का भी तुझपे देश कुछ क़र्ज़ होना चाहिए ,

तेरे सम्मान,आन,बान लिए माता ने उजाड़ी कोख़
ज़िन्दगी भर लिए जिसने आँचल रखी समेट शोक 
जिसने राखी की कलाई भेंट दी देश की भलाई पे    
दुख के पहाड़ का भी देश कुछ अर्ज़ होना चाहिए ,

जिसके गाँव का चराग़ बुझा मुरझाये फूल बाग़ के
जिस द्वारे पर अर्थी आई ध्वजा में लपेटी संवार के  
जिन आँसुओं की धार नहीं टूटे भाई को निहार के
दर्द,बलिदानी गांव का,देश कुछ दर्ज़ होना चाहिए। 


 देश भक्ति पर कुछ पंक्तियां

थोड़ा शर्म करो सियासत करने वालों
नमन तो करो देख जवानों का जज़्बा
सेना तुम्हारी ही  हिफ़ाज़त में ऐ मूर्खों 
करती सरहदों पर देश लिए जां क़ुर्बां ।

वतन से की मोहब्बत पर  क़फ़न का बांध कर सेहरा
एक दिन तो है मरना क्यूं ना मरें तिरंगा तन पर लहरा
ग़र आबाद रहे हिन्दोस्तान हम जवानों की शहादत से
तो क़ुर्बांन होने को देना जनम माँ बार-बार ईबादत से ।

वतन से मोह हमें इतना कि महक़ भरमा ना पाई गज़रे की
जुनून देशभक्ति का इतना चितवन रोक ना पाई कजरे की  
उन्माद वतनपरस्ती का भाल रुधिर का तिलक लगा निकले  
क़दम रणबांकुरों के न पाई रोक ममता भी माँ के अँचरे की ।
                             
दौलत,जागीर,तख़्तो-ताज़ हम परवानों का प्रिय तिरंगा है
वतन के गौरव लिए मर मिटना हम दीवानों का फण्डा है
सीने से लगाये रखना शहादत को हमारी न्यारी धरती माँ
शौक हो गया पूरा तन पर लपेट तिरंगा लहराया झण्डा है ।
                              
                                                

रविवार, 10 सितंबर 2017

किसी की शायरी, कविता का जवाब मेरे भाव में

 किसी की शायरी, कविता का जवाब मेरे भाव में

                  ( १ )

यहाँ धरती की सारी वस्तु सारे मकान मेरे हैं
ये हिन्दूस्तान मेरा है बता दे जा कोई उसको
वोे किरायेदार हैं तो रहें किरायेदार की तरह 
रास्ता बाहर का भी बता दे जा कोई उसको ,   

हमारे बाप तक न पहुँचें हम तक रहें अच्छा  
भलमनसाहत यही कि इन्हें बर्दाश्त करते हैं
जो असुरक्षित यहाँ पर जिनकी सांसें है बन्दी
वो कहीं जा ठिकाना ढूंढ लें आगाह करते हैं ,

ज़ुबां कैंची सी चलती एहसानफ़रामोशों की
अरे जान हथेली पर तो हम लोगों की ग़द्दारों 
अलग-अलग वस्तियां हमारी और तुम्हारी हैं
न ज़द में हैं न रहते हैं विश्वासघातों के ग़द्दारों 

सब मिल बांट रहें ग़र समझें देश को अपना
ना कोई दुश्मन यहाँ उनका न जान खतरे में
हमारी घर-गली में रहके,जमाते धौंस हमी पे 
बोलें तोल शब्दों को मत घोलें झाल मिसरे में ।
                                      
           ‌             ( २ )

उँगलियाँ झूठी नहीं ऊठतीं,न हवा में तीर छूटता है
खिलाफ़त क्यों तेरे दुनिया,जरा पड़ताल तो कर ले ,

ग़र होती खूँ की बूँदें मिट्टी में,जुबां कड़वी नहीं होती
घाती कौन,किसका ख़ौफ़ ,पता घड़ियाल तो कर ले ,

बासिन्दे कहाँ के तुम,क़लमें किस मुल्क़ के हो गढ़ते 
रहते क्यों शक़ के दायरे में,ज़िरह ज़ल्लाद  तो कर ले ,

पोंछो गर्द चश्मों की,औ देखो बिरादरी का वहशीपन
आँखें अंँधी हैं कि बहरे कान,तस्दीक़  हाल तो कर ले ,

ग़र बन्दिशें हैं तेरी सांसों पे,यहाँ महफूज नहीं ग़र तूं
जमीं ज़ल्दी छोड़ देने का फ़ैसला,तत्काल तो कर ले ,

इक भूल का ख़ामियाज़ा भुगत रहा देश आज तक
चला जा पाक नमक हराम वहाँ खुशहाल तो रह ले ,

जिसका दिल हिन्दूस्तानी स्वागत दिल से हम करते
ग़द्दारों  कैसा हो सुलूक बिचार फिलहाल तो कर ले ।

                                                    शैल सिंह
               

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...