शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

गज़ल

           ग़ज़ल


बंद रखा है दिल का झरोखा 
ये पागल पवन  ना उड़ा ले 
कहीं यादों का अनमोल तोहफा 
ये पागल  ........। 

ज़मज़मा लगती ज़िंदगी सनम 
एहसास की मीठी-मीठी चुभन 
हमसफर साथ हैं परछाईयाँ 
महकाती जीवन की तन्हाईयाँ 
जाग काटी हैं रातें नयन में
भोर सा नींद में ना चुरा ले
कोई सपनों का झिलमिल भरोसा 
ये पागल ........। 

भींचकर ख़्वाब की बांह में 
बेश-कीमती साज मन छांह में  
ख़त सीने से तेरा लगा रखा है  
बीते लम्हों की चीजें छुपा रखा है 
ये मनमौजी काली घटायें 
उमड़कर बरस ना बहा लें 
बेशुमार जलवों का निशां अनोखा 
ये पागल ...........। 

जमजमा---संगीतमय,मनोरंजक 
                                             शैल सिंह 


बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...