शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

कविता '' तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के ''

 '' तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के ''


दूर मंजिल बहुत,हूँ तन्हा सफ़र में
        मगर  बांटने  हर-पल  तन्हाईयाँ
              साथ चलता रहा चाँद मेरे सफ़र में।

कभी मुख पे डाले घटाओं के घूँघट 
         कभी बादलों के झरोखों से झांके
                कभी सुख की लाली का आलम लिए
                     दर्द की मांग भर जाये चुपके से आके।

कभी वैरागि मन की पगडंडियों पर
       तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के 
              कभी फायदा भोलेपन का उठाता
                  लुका-छिपी कर छलता रहा आते-जाते।

कभी सोई अनुभूतियों को जगाता
     कभी थम सा जाता पराजय पर आके
           कभी झकझोर कर गुदगुदाता हँसाता
                   इक निर्धूम दीया रोशनी की जला के। 

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

चुनौतियों से लड़कर जीना अब तो मैंने स्वीकार लिया

चुनौतियों से लड़कर जीना अब तो मैंने स्वीकार लिया 



मुक़द्दर के शहर में भटक रहा है,मेरे जीवन का लक्ष्य
मित्र कहाँ से कहाँ पहुँच गए,थे जो कभी मेरे समकक्ष,

हैरां हूँ खुदा के फैसले पे,था जो सबसे श्रेष्ठ सबमें दक्ष
उसके साथ अनीति क्यूं ऐसी पूछ रही प्रश्न बनके यक्ष,

रही ना ताक़त संघर्षों की मन का विश्वास भी हार गई
अखर रहा जीवन भर की ही सारी मेहनत बेकार गई,

उम्र के इस ढलान पे आ चाहतों ने भी दम तोड़ दिया
चुनौतियों से लड़कर जीना अब तो मैंने स्वीकार लिया  ,

असफ़लता से हार न मान दुश्मन के चाल से हार गई
साथ मेरे ये बार-बार हुआ  जालसाजी का शिकार हुई। 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

" कब किसके संग कहाँ किया भेदभाव "

कविता " मोदी जी पर "

एक के खिलाफ सारे लामबंद हैं
जिसके साथ बस आवाम चंद हैं
जिसने महका दिया नाम देश का 
विश्व के फलक पर फूल की तरह
वो इंसान मोदी ससम्मान पसंद हैं ।
                          
सरसठ वर्षों की चरमराई व्यवस्था
है पटरी पर भी लाना वक्त तो जनाब चाहिए ।
जिसका घर परिवार पूरा देश दोस्तों
उसे देशवासियों का सहयोग बेहिसाब चाहिए ।
अभी तो हुए हैं जुम्मा-जुम्मा चार दिन
सारे विरोधियों का जुमला बस हिसाब चाहिए ।
टमाटर,प्याज,दाल तक हैं सीमित जो
वो बताएं उन्हे कैसे भारत का ख़िताब चाहिए ।
स्वप्न कमरतोड़ मशक्कत का जिसके
कि हर क्षेत्र में भारत होना बस आबाद चाहिए ।
बन्द कर दीं लूटने खाने की खिड़कियाँ
बताओ देेश,लुटेरों को देना क्या जवाब चाहिए ।
कब किसके संग कहाँ किया भेदभाव
जिसे बस सबका साथ सबका विकास चाहिए ।
जाति,द्वेष,धर्म में बांट मत देश तोड़िए
प्यारा हिन्दुस्तान आपको भी तो नायाब चाहिए ।
बढ़ती हैसियत भी जरा देखेें हिन्द की
हिन्दुस्तान को मोदी सा कद्दावर अंदाज चाहिए ।
                                       शैल सिंह

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

कविता '' हो गए तुम अपरिचित से प्रीति की लत लगा ''

'' हो गए तुम अपरिचित से प्रीति की लत लगा ''


हर रात स्वप्नों की गठरी मेरी पलकों पे रख,
सुबह रश्मियों का उपहार दे जगाते हो क्यूं
शहद मिश्रित परिन्दों के कलरव निनाद सा
गुनगुना,मुझे सुबोध परों से सहलाते हो क्यूँ ,

प्यास अधरों की जगा सरगम श्वसनों में भर  
छेड़ उन्मुक्त सिहरनें गुद-गुदा जाते हो क्यूँ
हौले स्पर्श से मन की कुमुदनी का शतदल
कर मधु सा मौन संवाद,खिला जाते हो क्यूँ ,

तेरी दक्ष दग़ाबाज़ी में जली हूँ मैं परवाने सी  
करूँ कोशिशें बहुत तुझे भूल जाने की रोज
मगर दृग में स्वप्नों का जलता दीया ढीठ सा
रख जाता लौ आश्वासनों का मुहाने पर रोज ,

माना कि होतीं हैं नब्ज़ें स्पन्दित तुम्हारे लिए
पर अब मौसम भी धैर्य के मानो ठूंठ हो गए
मेरी आवाज़ें भी लौट आतीं क्षुब्ध दर से तेरी        
हर आहटें,दस्तक़ें भी अब मानो झूठ हो गए ,

कितनी रातें काटीं पट झरोखों का थामे हुए 
नयन निरखते रहे राह जहाँ तक सामर्थ्य थी  
हो गए तुम अपरिचित से प्रीति की लत लगा
मैं स्वप्नों का की श्रृंगार जहाँ तक सामर्थ्य थी ,

पीर की ध्वनि को दी अँकवार जब शब्दों ने
भाव आकुल हो उमड़े भींगीं कोरें नयन की
भर अंक में चूम ली लिखी गीतों की श्रृंखला  
उर के गीले तट फूट गईं नई भोरें गगन की।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...