शुक्रवार, 29 जून 2018

गजल " पीछा करेंगी तेरा ताउम्र बेजुबां परछाईयां मेरी "

पीछा करेंगी तेरा ताउम्र बेजुबां परछाईयां मेरी


मुझमें ख़ामियां ढूंढ़ते-ढूंढ़ते
भूल गए तुम मेहरबानियां मेरी,

वक़्त बदला जरूर बदली नहीं मैं
कब मिटा पाये तुम निशानियां मेरी,

सुना है चर्चे जुबान पर सबके आज भी 
सुनाते बड़े चाव से हो तुम कहानियां मेरी,

इतना आसां नहीं भूल जाना इस नाचीज़ को 
पीछा करेंगी तेरा ताउम्र बेज़ुबां परछाईयां मेरी,

चांँदनी रात में जब होगे तनहा छत की मुंडेर पर
तड़प कर रह जाओगे आयेंगी याद अंगड़ाईयां मेरी,

खुला रखना गुजरे वक़्त के यादों की सारी खिड़कियां
बेआवाज़ देंगी दस्तक़ क्यूँकि बेवफ़ा नहीं तन्हाईयां मेरी,

वक़्त औ हालात लेकर चले थे साथ,दिल पर हुकूमत करने
मापे न हद मेरे चाहत की,उर में उतर उर की गहराईयां मेरी,

तकेंगे दरों-दीवार तुझे अजनवी की तरह मुझसे बिछड़ने के बाद
संजीदा हो बयां करना बेबाक़,चंद अल्फ़ाज़ में सही अच्छाईयां मेरी।

                                                                शैल सिंह



गुरुवार, 28 जून 2018

kavita '' एक सैनिक की चिट्ठी माँ के नाम ''

एक सैनिक की चिट्ठी माँ के नाम 

ख़त के मजमून क्या हैं
पढ़ने की स्थिति में होते नहीं
धैर्य का पुलिन तोड़ बहा मत करो
इस तरह खत माँ लिखा मत करो,

टपकी हुई बूंदें,छितरी हुई स्याही
बिखरे हुए शब्द अस्पष्ट 
कातरता से भींगे सिमसिम से पन्ने
माँ एक भी हर्फ़ पढ़ ना सकूं
इस तरह विक्षिप्त हो जाता हूं माँ 
वात्सल्य से सींचा,भावनाओं से भींगा
अहसासों में पिरोया,जज्बातों से गीला
अबसे सादा कागज लिफाफे में भर भेजना
तेरीे हर अभिव्यक्तियां महसूस कर लूंगा माँ ।

तेरी नसीहतों का पालन करता हुआ
मुस्तैदी से ड्यूटी निभाता हूँ माँ
तेरे स्नेहिल हाथों का निवाला महसूस कर
रूखा सूखा कुछ भी निगल लेता हूँ माँ 
मुंह पोंछ लेता हूं आभास कर तेरे आंचल का छोर
सीवान,बियाबान जंगल में भी
खुले आसमान तले सर्दी-गर्मी में भी
कहीं भी सो लेता हूं,नरम गलीचा समझ
तेरे हाथों की थपकियों का कर अहसास माँ ।

इस तरह आद्र होकर मत हाल पूछा करो
खत का स्वरूप देख आंदोलित हो जाता हूँ मांँ
गडमड हो जाते हैं हर्फ़ आंसूओं के तालाब में
आड़ी-तिरछी लगतीं तहरीर की हर पंक्तियां
बयां करते हैं ख़त हाल तेरा जो माँ 
बिखर जाऊंगा मैं हौसला मुझको दो
देश की रक्षा लिए है शत्रुओं का संहार करना
लम्बी उमर की रब से दुआ बस करो
इस तरह खत माँ लिखा मत करो।

ऋण तेरे दूध का आया अदा करने माँ 
उस अनमोल दूध की दुहाई ना देना
कहीं विचलित ना हो जाऊँ महान कर्म पथ से
देश पर मंडरा रहे घातों के बादल घेनेरे
चौकसी में तैनात दिन-रात सीमाओं पर
प्राण रखकर हथेली पर हम लाल तेरे
शत्रुओं का विनाश करने की मन में है ठानी
ऐसी रवानी पे माँ फख्र किया बस करो
इस तरह ख़त माँ लिखा मत करो।

                                       शैल सिंह 

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...