गुरुवार, 7 अगस्त 2014

शायरी

शायरी


ग़र मुस्करा दो जानेमन,जानेजां
गुल गुलशन के सारे निखर जाएंगे,

तेरे चलने से आये खिजाँ में बहार
शमां दिल की जलाओ ठहर जाएंगे,

गर बिखरा दो जुल्फों की काली लटें
मस्त मुनव्वर घटा में नजर जायेंगे ,

ग़र छेड़ दे दिल प्यार की दो ग़ज़ल
ग़म के लम्हें भी सर्र से गुजर जाएंगे,

तलब तेरे भी आँखों में देखी है, ग़र
हक़ीक़त बयां हो दिल में उतर जाएंगे ।

                                  शैल सिंह 

सोमवार, 4 अगस्त 2014

मेरे गाँव सी

मेरे गाँव सी


जब भी शहर आया कोई गाँव से हमारे
मानो यादों की गठरी लाया बचपन की सारे,

भोर की गुनगुनी धूप साँझ की लालिमा
खिल के परिदृश्य नाच उठते अँखियों के द्वारे ,

मित्रों की मण्डली टीला गाँव के छोर का
उछल-कूद नदी,बाग़,गपना पोखरों के किनारे ,

बेल,झरबेरी,जामुन,ईमली आम का टिकोरा
मछलियों का पकड़ना ओ फंसा कंटियों में चारे ,

थपकी आजी की माँ की झिड़की मीठी-मीठी
बाबूजी का नेह काका बाबा के दुलारों की फुहारें ,

दूध,दही,दाना,रस,मट्ठा,महुवा का ठेकुवा
हाट-बाट,राम लीला,नाटक,मेला गाँव के चौबारे ,

होली का हुड़दंग,दशहरा,दीवाली के पटाखे
बाइस्कोप ,गिल्ली-डंडा,झूला,कंचे तैरते नज़ारे ,

मजूर शलगु दादा,मुंशी धोबी,महजू काका
महरिन काकी का पानी भरना नित साँझ-सकारे ,

यहाँ कब उगता सूरज ढलती है शाम कब
कब नहाती चांदनी में रात जगमगाते कब सितारे ,

कैसे होते पड़ोसी रखते पट बंद खिड़कियां
कहाँ जानते हैं शहर वाले मेरे गाँव जैसे भाई-चारे ,

है शहर की कहाँ सोंधी महक मेरे गाँव सी
फिरती रही भीड़ भरे नगर में भी मायूस मारे-मारे ,

                                                                        शैल सिंह

चाँदनी सी शीतलता

चाँदनी सी शीतलता


चाँदनी सी शीतलता जब मन ना घुली
तो चाँद पर पहुँच जाने से क्या फ़ायदा ,

मानवता ने मानवता जब छुआ नहीं
खुद महानता दर्शाने से क्या फ़ायदा ,

दिल को आहत करे जो हर लफ्ज़ से
उसे महात्मा बन जाने से क्या फ़ायदा ,

छोटे-बड़ों का आदर सम्मान ही नहीं
तो उसके धनवान होने से क्या फ़ायदा ,

जो हाथ ग़ुरबत में भी देना सीखा सदा
गुर धनवान ना सीखा तो क्या फ़ायदा ,

खुद के लिए जीते करते हैं संग्रह सभी
किया जग लिए कुछ ना तो क्या फ़ायदा ,

क्यों झुकी रहती है डाली फलों से लदी
मगरूर ओहदा न जाने तो क्या फ़ायदा ,

सुख समाये ना जिसमें हर ख़ुशी के लिए
माल,दौलत और शोहरत से क्या फ़ायदा ,

दिल दुखे ना जिसका दीन दुःखी के लिए
भला धर्म,कर्म,दान,पुण्य से क्या फ़ायदा ।

ग़ुरबत--ग़रीबी
                                           शैल सिंह

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...