बुधवार, 23 सितंबर 2015

जब-तब यादों का सोता उमड़ कर

जब-तब यादों का सोता उमड़ कर


कहावत है तन बूढ़ा तो हो जाता है
पर सच ,मन कभी बूढ़ा नहीं होता ,

पछुवा,पूरवा,भाटा,तूफान,बवण्डर
आँधियाँ ना जाने कैसी-कैसी आईं
फिर भी हृदय में जलता स्मृति का
कभी अड़ियल दीया बुझा ना पायीं  ,

हिफ़ाज़त से अतीत को तस्वीरों में
घर की दरों-दीवारों सजाये रखा है
मैंने बचपन की यादों के हरेक पन्ने 
ह्रदय के तलागार में दबाये रखा है ,

जब-तब उमड़कर यादों का सोता
एकान्त में आर्द्र नयन कर जाता है
खोल झरोखा दिखा परछाईयों को  
खुशियों से सूना कोना भर जाता है ,

जीवन में जाने कितने आये गए पन
पर सबसे सुन्दर अपना बचपन था
यौवनपन की कुछ मीठी यादें साथ 
संग इस पन में केवल चिन्तन आह,

दिल बहका जी देख पुरानी तस्वीरें
दिखा करते कैसे जवानी में हम भी
पर सामने खड़ा यह हठात आईना 
बता गया सच कहाँ आ गए हम भी ,

कैसा-कैसा विभिन्न रूप और रंगत 
धारा है जीवन में यह माटी का तन
पर परिस्थितियों के हर कैनवास पे 
ख़ुद को सजा निख़ार कर रखा मन  ,

चाँदी सी सफेदी चमक रही केश में
तन कृशकाय हुई मलिन यह काया
मद्धिम हो गई रौशनी भी आँखों की 
पर मन पर अभी भी ख़ुमार है छाया ।

                                             शैल सिंह








मंगलवार, 22 सितंबर 2015

हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा

हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा

जब दूर होगी हमसे,हिंदुस्तान से हिंदी
फिर अंग्रेज़ी के साथ हमारा क्या होगा
गंगा,जमुनी तहज़ीब संस्कृति,सभ्यता
हमारे सनातन,धर्म का आगे क्या होगा ,

चन्द हिमायती अंग्रेजी को आबाद कर
राष्ट्रभाषा का अनादर करते हैं कितना
हमारी सांस्कृतिक विरासतों के गढ़ से 
इसी मुई लिये लापरवाह रहते हैं इतना,

अंग्रेजों को तो इस मुल्क से दिया खदेड़ 
ये अंग्रेजी यहाँ ठाठ से पोषित होती रही
ग़फ़लत में हमारी इस सौतन भाषा संग  
सनातनी धर्म पग-पग शोषित होती रही,

अंग्रेजी की वक़ालत करने वालों की बस     
मुश्किल से भारत में  मुट्ठी भर तादात 
हिंदी करोड़ों भारतीयों के जुबां की रानी  
भला कैसे करें पराई भाषा यहाँ बरदाश्त,

न रंग-ढंग चाल-चलन रत्ती तहजीब ही  
आदर-सम्मान छोटे-बड़ों का भाव नहीं
ख़ाक़ करेगी बेअदब मुकाबला हिंदी का
जिसमें देशप्रेमी रखते रंच भी चाव नहीं ,

मानते हैं अवांछनीय नहीं है कोई भाषा
अनेक भाषाओं का ज्ञान बुरा नहीं होता  
राष्ट्रभाषा का अनादर हो इस बीना पर
ये ससुरी आँख तेरेरे स्वीकार नहीं होता ,

हिंदी का प्रचार-प्रसार कर पोषण संवर्धन 
मातृभाषा अर्श पे ला दुनिया को दर्शाना है  
भारतीय संस्कृति के सनातनी प्रवाहों को 
भारतवासी कोटि-कोटि अक्षुण्ण बनाना है।

                                             शैल सिंह 


बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...