शनिवार, 13 अगस्त 2022

तुम याद बहुत आए

         तुम याद बहुत आए 


जब-जब कोकिल ने गान सुनाए
और चटक चाँदनी उतरी आँगन 
जब-जब इन्द्रधनुष ने रंग बिखेरा 
जब-जब आया पतझड़ में सावन 
         तब-तब प्रियतम तुम याद बहुत आए ,

जब-जब तंज कसे मुझपे जग ने 
मन के सन्तापों पर किया प्रहार 
माथे की शिकन पर गौर ना कर 
दुःखती रेखाओं को दिया झंकार 
         तब-तब प्रियतम तुम याद बहुत आए ,

उन्मद यौवन की प्यासी आँखों ने
कभी था उर में तेरा अक्स उतारा 
नाहक़ ही हुई मैं बदनाम निगोड़ी 
जब देखके चढ़ा था जग का पारा 
        तब-तब प्रियतम तुम याद बहुत आए ,

हर के जीवन की होती एक कहानी
किसी के छंट जाते बादल बेपरवाह
जबकि दूध का धुला यहाँ कोई नहीं
जब आईना दिखा दिया गया सलाह 
        तब-तब प्रियतम तुम याद बहुत आए ,

जब-जब दामन पर उछला कीच 
मेरे  पाप-पुण्यों  पर उठा  सवाल
कितनों की करतूतें  गुमनाम रहीं
जब दिल के ठेस पर मचा बवाल
         तब-तब प्रियतम तुम याद बहुत आए ।

                                         शैल सिंह

बुधवार, 10 अगस्त 2022

N.R,R.I. CUTTACK '' इस संस्थान में प्रवास के दौरान लिखी गई मेरी कविता ''


       

         N.R,R.I.  CUTTACK  

'' इस संस्थान में प्रवास के दौरान लिखी गई मेरी कविता ''

जिस धरती पर सूरज अपनी  पहली स्वर्णिम किरण बिखेरे
जिस देवभूमि का चरणामृत पी सागर की लहरें भरें हिलोरें
जिस रमणा के अंक में बहतीं  नदियों की कल-कल धाराएं
जिसके गर्भपिण्ड में कुदरत की अनमोल खनिज सम्पदाएँ ,

वहीं महानदी का सुरम्य तट जहाँ शोध संस्थान है धान का
जहाँ उन्नत नस्लों का होता संवर्धन कृषकों के कल्याण का
यहाँ नई नई प्रजातियों का होता विशेषज्ञों द्वारा आविष्कार
जो उन्नतशील तक़नीकियों से देते नवीन शोधों को विस्तार ,

जिस धरती ने महान अशोक के अन्तर्ज्ञान का दीप जलाया
जिसकी संस्कृति सभ्यता ने जग में अपना परचम लहराया
जहाँ अस्ताचल में इन्द्रधनुषी छटा बिखेरता सूरज सागर में
जिस पावन भूमि ओडिशा को कृतज्ञ किया नटवर नागर ने ,

जिस धरती ने सुभाष चंद्र सा भारत को विराट रतन दिया है
जिस धरती पे धर्माचार्यों ने जगन्नाथ धाम का सृजन किया है
जिस प्रदेश की मोहक कलाकृतियाँ भी विमोही दृश्य उकेरें
जिस तपोभूमि पर गूँजा करतीं नित दैव स्तुतियाँ साँझ-सवेरे,
 
जिस माटी में रची-बसी हैं हस्त,शिल्प रोचक ललित कलाएं
जिस धरती पर झील का उद्गम संसार के पांखी करें क्रीड़ाएं
दार्शनिक अनूठा कण-कण जहाँ का प्रकृति के अनुदान का 
उस मनोहारी रमणीक धरा पे अनुसंधान संस्थान है धान का

इस विज्ञान केंद्र का धान के भूखंड में योगदान है अपरम्पार
जहाँ दूर देशों अन्यत्र क्षेत्रों से आकर करते रहते लोग दीदार
प्रतिवर्ष प्रशिक्षण ले किसान अधिष्ठान से दक्ष हो कर जाते हैं
आधुनिक शोधों के प्रादुर्भाव से अत्यधिक अनाज उपजाते हैं 

कटक शहर के सानिध्य बसा नामी शोध संस्थान ये धान का
जहाँ वैज्ञानिक निभाते महती भूमिका प्रसिद्ध क्षेत्र विज्ञान का 
भूखमरी उन्मूलन हेतु केन्द्र सरकार ने यहाँ खोला ये संस्थान
जहाँ उत्कृष्ट रूपों में खाद्यान्न का हुआ विकासोन्मुखी उत्थान,

शैल सिंह





बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...