मंच पर कविता आरम्भ करने से पहले,समां बांधने के लिए
मेरी आँखों का पीके मय
सभी मदहोश बैठे हैं
नशा नस-नस तरल कर दी
सभी ख़ामोश बैठे हैं,
सभी मदहोश बैठे हैं
नशा नस-नस तरल कर दी
सभी ख़ामोश बैठे हैं,
पलकें हो गईं शोहदा
झपकना भूल बैठी हैं
जब से आई हूँ महफ़िल में
सभी खो होश बैठे हैं,
झपकना भूल बैठी हैं
जब से आई हूँ महफ़िल में
सभी खो होश बैठे हैं,
ग़र हो तालियों की गूँज
तो भंग तन्द्रा सभी की हो
महफ़िल हो उठे जीवन्त
करतल ध्वनि सभी की हो,
तो भंग तन्द्रा सभी की हो
महफ़िल हो उठे जीवन्त
करतल ध्वनि सभी की हो,
बंधन खोल हथेली का
सुर साजों से नवाज़ें ग़र
हो अन्दाजे-बयां माहौल
वाह-वाह धुन सुना दें ग़र,
सुर साजों से नवाज़ें ग़र
हो अन्दाजे-बयां माहौल
वाह-वाह धुन सुना दें ग़र,
शब्दों से करूं सराबोर
महफ़िल हो जाए गदगद
गर दें हौसला रंच भी
मन के तार छेड़ूं अनहद,
महफ़िल हो जाए गदगद
गर दें हौसला रंच भी
मन के तार छेड़ूं अनहद,
गणमान्य अतिथियों का
करूं भरपूर मनोरंजन
दर्शक दीर्घा में बैठे सज्जनों
करुं शत-शत नमन वन्दन ।
शैल सिंह
करूं भरपूर मनोरंजन
दर्शक दीर्घा में बैठे सज्जनों
करुं शत-शत नमन वन्दन ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें