रविवार, 17 सितंबर 2017

'' तिरंगा तन सजा सोचा न था तेरा मन दुखा दूं माँ ''

एक शहीद की अन्तर्व्यथा माँ के लिए 


ऐ मेरे मित्रों मेरे गांव तुझसे मेरे हिन्द ये कहना है
शहीदों के मज़ारों पर नित्य दीप जलाये रखना है ,

याद आए मेरी दिल को जरा समझा लिया करना
लगा सीने से तस्वीरों को मन बहला लिया करना
हर्गिज़ कोसना मत देश को ऐ त्यागमयी माताओं
लाल था देश का तेरा मन को बतला दिया करना ,

समझना गहरी नींद सोया हूँ तेरी लोरी सुन के माँ
जां कुर्बान वतन पर की कि तेरा कर्ज़ चुका दूँ माँ
आँसू अच्छे नहीं लगते योद्धा की माँ की आँखों में
तिरंगा तन सजा सोचा ना था तेरा मन दुखा दूं माँ ,

माँ तेरे कोंख का मैं ऋण चुका पाया नहीं तो क्या
प्रिये का साथ जीवन भर निभा पाया नहीं तो क्या
भारत माँ के चरणों में थी चाहत वीरगति हो प्राप्त 
अमर बलिदान की गाथा लिख सोया नहीं तो क्या ,

राष्ट्र के ग़ौरव लिए माँ लाड़ल़ा तेरा प्राण गंवाया है
नमन कर लो उन्हें जिनने तुझे आजादी दिलाया है
कायर आँसुओं से क्यों भिगोती दामन धरा का माँ
जंगे-मैदां ने रण-बांकुरों को तेरे फौलादी बनाया है ,

राजगुरु,सुखदेव,भगत भी किसी के लाल थे न माँ
जिनके शौर्य की गाथायें सुन हम बेहाल हुए थे माँ
वतन की गोद में सोने का गौरव जो आज है मिला
वही आशीष दो जो फ़ौज़ में जाते वक़्त दिए थे माँ।

                                             शैल सिंह




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