सोमवार, 13 मई 2024

ग़ज़ल----

 ग़ज़ल----
जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो वो आॉंखों से समझ लेना
कि करती हूँ मोहब्बत कितना तुमसे वो समझ लेना 
मुझको दीवानगी की हद तक मुहब्बत हो गई तुमसे 
मत कुछ पूछना जो कहें ख़ामोशियाँ वो समझ लेना ।

तेरी हर ज़िक्र पर हर शब्द का शायरी में ढल जाना 
तुझसे बात करते वक़्त नज़र नीची करके शरमाना 
बार-बार मेरी तरफ़ तेरा देखना मेरा यूं घबरा जाना 
अनजाने ही फिर इक दूजे की निग़ाहों में खो जाना ।

मोहब्बत का सुरूर कैसा न जानते तुम न जानें हम 
कितनी मुश्किल भरी राहें न जानते तुम न जानें हम
चल पड़े बेफिक्र इस राह दहर ने जीना किया दुश्वार 
कैसे नयनों ने किया शिकार न जाने तुम न जाने हम  ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मेरी रचना के अवलोकन हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया आलोक जी

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  2. वाह ! इश्क़ का रंग ऐसे ही चढ़ता है

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  3. बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार लेखन 👌

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