मंगलवार, 28 मई 2024

वाह रे गर्मी

वाह रे गर्मी---

भीषण गर्मी का आक्रमण 
किसी यन्त्रणा से कम नहीं 
ताप सहन करना मुश्किल 
अलसाई लगे दोपहरी 
बादल का आसार नहीं 
मेघ से चलो करें चिरौरी 
झुलस रहा है कन-कन 
कब बरसोगे घनश्याम 
तपन से दरक रही धरती 
लगे नहीं शीतल सी शाम 
सूरज का पारा बढ़ता जाये
कोमल काया झुलसाये
सूखी नदियां,नाले,ताल,कछार 
गर्मी ने कर दिया जीना दुश्वार 
गर्म हवाएं आग बरसायें 
विरान हुआ चिड़ियों का खोता
जल बिन मछली तड़प रही 
कैसे लगायें बिन पानी गोता
तरूवर भी हाथ खड़े कर दिए 
नहीं कहीं शीतल सी छाया
पीपल बरगद भी मुर्झाये
नहीं उन्हें भी पहले सी माया
उमड़ घुमड़ बरसो ना मेघ
लगा दो गर्मी में सेंध 
क्यों नाराज़ हो बरखा रानी 
झम झमाझम बरसा दो पानी ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 23 मई 2024

रिटायरमेंट के बाद

रिटायरमेंट के बाद--

सोचा था ज़िन्दगी में ठहराव आयेगा 
रिटायरमेंट के बाद ऐसा पड़ाव आयेगा 
पर लग गया विराम ज़िन्दगी को 
अकेलापन,उदासी का चारों तरफ घेरा
मौसम उदास होता है या मन समझ नहीं आता
दिन कचोटता बीतती शाम तनहा तनहा 
कैसे कट रहा ज़िन्दगी का हर एक लमहा
सेवानिवृत्त के बाद लगता जीवन कुछ रहा नहीं 
नौकरी थी तो कितने लोग साथ थे हमारे 
अब है केवल तन्हाई न कोई संगी न सहारे
बस दो काम खाना और सोना 
ना बचा कोई काम ना धाम बस आराम 
ना कोई शौक बचा ना कोई इच्छा 
ना पहनावे ओढ़ावे का अंदाज रहा
ना तो अब घूमने फिरने की वो ललक
बहुत कचोटता अकेलापन,उदासी,रिटायरमेंट
कितने यादगार पल हैं पर आज सब निष्काम 
कितनी शानदार थी नौकरी वाली ज़िन्दगी 
व्यस्त थे मस्त थे स्वस्थ थे
हॅंसने बोलने के लिए लोग तो थे 
आज जैसी वीरानी तो नहीं थी
बोरियत सी जिन्दगानी तो नहीं थी
विश्राम भी रास आता नहीं 
सेवानिवृत्त का वरदान भी सुहाता नहीं 
कहां बड़े बड़े बंगले खुला खुला सहन
और अब अपार्टमेंट का बंद बंद घुटा घुटा कक्ष
मन में निराशाजनक और नकारात्मक बातों का आना रिटायर के बाद स्फूर्ति और उर्जा का क्षरण हो जाना
गांव में भी रहना मुश्किल वहां कोई रहा नहीं 
शहर भी रास आता नहीं यहां कोई अपना नहीं 
वाह रे ज़िन्दगी किस मोड़ पे ला खड़ा कर दी
कि स्वछंद भी आजाद भी फिर भी कैसी ज़िन्दगी।

शैल सिंह 

शनिवार, 18 मई 2024

नज़्म ----

नज़्म ---

अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको 
ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको
तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे
ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे ।

खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं
तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं
तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं
दूर कितना भी रहूॅं तेरे पास नज़र आऊं ।

मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम 
आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम
ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे
मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम ।

अजनवी होके भी कितने करीब आ गये
रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये
तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये
तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


नज़्म ---

अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको 
ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको
तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे
ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे ।

खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं
तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं
तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं
दूर कितना भी रहूॅं  तेरे पास नज़र आऊं ।

मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम 
आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम
ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे
मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम ।

अजनवी होके भी कितने करीब आ गये
रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये
तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये
तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 16 मई 2024

ये तनहाई

ये तनहाई --
सुबह तनहा शाम तनहा 
तनहा ज़िन्दगी का हर लमहा 
परछाईंयां भी अब डराने लगी हैं
सुख चैन ज़िन्दगी का चुरानें लगी हैं 
कैसे कटेगी ज़िन्दगी की बाकी उमर 
तनहा-तनहा लगता आठों पहर
ना जाने किसकी लग गई नज़र 
नहीं तन्हाई का अब कोई हमसफ़र 
अपने चारों तरफ तन्हाई का मेला
भीड़ भरे शहर में भी फिरते अकेला 
न महफ़िल न मयखाना ना कोई खेला
न कोई संगी संम्बन्धी ना कोई चेला
गुज़र रही ज़िन्दगी अकेला अकेला। 
शैल सिंह 

सोमवार, 13 मई 2024

ग़ज़ल----

 ग़ज़ल----
जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो वो आॉंखों से समझ लेना
कि करती हूँ मोहब्बत कितना तुमसे वो समझ लेना 
मुझको दीवानगी की हद तक मुहब्बत हो गई तुमसे 
मत कुछ पूछना जो कहें ख़ामोशियाँ वो समझ लेना ।

तेरी हर ज़िक्र पर हर शब्द का शायरी में ढल जाना 
तुझसे बात करते वक़्त नज़र नीची करके शरमाना 
बार-बार मेरी तरफ़ तेरा देखना मेरा यूं घबरा जाना 
अनजाने ही फिर इक दूजे की निग़ाहों में खो जाना ।

मोहब्बत का सुरूर कैसा न जानते तुम न जानें हम 
कितनी मुश्किल भरी राहें न जानते तुम न जानें हम
चल पड़े बेफिक्र इस राह दहर ने जीना किया दुश्वार 
कैसे नयनों ने किया शिकार न जाने तुम न जाने हम  ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 8 मई 2024

उफ्फ ये गर्मी --

उफ्फ ये गर्मी --

कड़ी धूप पथिक बिचारा ढूंढ रहा तरूवर की छांव 
तनिक छंहा ले विश्राम कर कहीं नहीं है ऐसा ठांव।

प्रकृति संँग खिलवाड़ हो रहा काटे जा रहे हैं जंगल
जल-कल विटप व्यर्थ कर,हो रहा बस अपना मंगल।

अम्बर उगल रहा है आग तपिश से त्रस्त हुई धरित्रि
प्रकृति से छेड़छाड़ देखकर दुख से दुखित हुई सृष्टि।

सूरज अग्नि का बम बरसा रहा पसीने से तर-बतर
तेज धूप में बाहर निकलें कैसे ऐसी गर्मी लगे जहर।

पछुआ पूरवा की हवा बहे प्रचंड सूखे पेड़ औ पत्ते
पंछियों के खोते उड़े,उड़े जा रहे मधुमक्खी के छत्ते।

अटा धूल से आंगन छत ओसारा चिलचिलाती धूप
हलक प्यास से तर होती नहीं ना लगे गर्मी से भूख।

सूनी गलियां सूना दोपहर सब एसी, कूलर में दुबके 
शहर की खामोशी भाए ना चलो गांव बगीचे में बैठें।

प्रदूषण बढ़ रहा शहर में विकसित ऐसा हुआ शहर
गांवों को गंदा कहने वाले जांयें देखें खुशहाल नगर।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...