ये तनहाई --
सुबह तनहा शाम तनहा तनहा ज़िन्दगी का हर लमहा
परछाईंयां भी अब डराने लगी हैं
सुख चैन ज़िन्दगी का चुरानें लगी हैं
कैसे कटेगी ज़िन्दगी की बाकी उमर
तनहा-तनहा लगता आठों पहर
ना जाने किसकी लग गई नज़र
नहीं तन्हाई का अब कोई हमसफ़र
अपने चारों तरफ तन्हाई का मेला
भीड़ भरे शहर में भी फिरते अकेला
न महफ़िल न मयखाना ना कोई खेला
न कोई संगी संम्बन्धी ना कोई चेला
गुज़र रही ज़िन्दगी अकेला अकेला।
शैल सिंह
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर
हटाएं