वाह रे गर्मी---
किसी यन्त्रणा से कम नहीं
ताप सहन करना मुश्किल
अलसाई लगे दोपहरी
बादल का आसार नहीं
मेघ से चलो करें चिरौरी
झुलस रहा है कन-कन
कब बरसोगे घनश्याम
तपन से दरक रही धरती
लगे नहीं शीतल सी शाम
सूरज का पारा बढ़ता जाये
कोमल काया झुलसाये
सूखी नदियां,नाले,ताल,कछार
गर्मी ने कर दिया जीना दुश्वार
गर्म हवाएं आग बरसायें
विरान हुआ चिड़ियों का खोता
जल बिन मछली तड़प रही
कैसे लगायें बिन पानी गोता
तरूवर भी हाथ खड़े कर दिए
नहीं कहीं शीतल सी छाया
पीपल बरगद भी मुर्झाये
नहीं उन्हें भी पहले सी माया
उमड़ घुमड़ बरसो ना मेघ
लगा दो गर्मी में सेंध
क्यों नाराज़ हो बरखा रानी
झम झमाझम बरसा दो पानी ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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