उफ्फ ये गर्मी --
तनिक छंहा ले विश्राम कर कहीं नहीं है ऐसा ठांव।
प्रकृति संँग खिलवाड़ हो रहा काटे जा रहे हैं जंगल
जल-कल विटप व्यर्थ कर,हो रहा बस अपना मंगल।
अम्बर उगल रहा है आग तपिश से त्रस्त हुई धरित्रि
प्रकृति से छेड़छाड़ देखकर दुख से दुखित हुई सृष्टि।
सूरज अग्नि का बम बरसा रहा पसीने से तर-बतर
तेज धूप में बाहर निकलें कैसे ऐसी गर्मी लगे जहर।
पछुआ पूरवा की हवा बहे प्रचंड सूखे पेड़ औ पत्ते
पंछियों के खोते उड़े,उड़े जा रहे मधुमक्खी के छत्ते।
अटा धूल से आंगन छत ओसारा चिलचिलाती धूप
हलक प्यास से तर होती नहीं ना लगे गर्मी से भूख।
सूनी गलियां सूना दोपहर सब एसी, कूलर में दुबके
शहर की खामोशी भाए ना चलो गांव बगीचे में बैठें।
प्रदूषण बढ़ रहा शहर में विकसित ऐसा हुआ शहर
गांवों को गंदा कहने वाले जांयें देखें खुशहाल नगर।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
पेड़ लगाने होंगे अगर प्रकृति को बचाना है सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएं